ईचागढ़ (विद्युत महतो) समय के साथ प्राचीन- रिती रिवाज व परम्पराएं भी बदल रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति के दूसरे दिन नये कपड़े पहनकर हल चलाकर अखान जातरा करने का रिवाज प्राचीन काल से होते आ रहा है, मगर कहीं न कहीं इन परम्पराओं पर भी ग्रहण लग रहा है.
कुछ ऐसा ही नजारा सरायकेला- खरसावां जिला के ईचागढ़ व कुकड़ू प्रखंड क्षेत्र में देखने को मिल रहा है. रिवाज के अनुसार बांग्ला पंचांग के पहले माघ को स्नान कर नये कपड़े पहन कर किसान अपने खेतों में हल चलाकर व गोबर खाद को कुदाल चलाकर आखान यात्रा करते हैं. धान पीटाई कर घरों में धानों को सुरक्षित रखने के बाद नये वर्ष में आखान यात्रा कर खेती का प्रारंभ किया जाता है. अब किसानों के पास हल बैल ही गायब सा हो गया है. अब किसान ट्रैक्टर से ही हल जोतने सहित तमाम कृषि कार्य करते हैं.
आधुनिकता की इस पाश्चात्य संस्कृति की हनुमान कूद में परम्पराओं को भी ग्रहण सा लगता दिखाई दे रहा है. अधिकांश गांवों में सोमवार को किसान हल के बदले गोबर काटकर अखान यात्रा करते देखे गए. गांवों में इक्के- दुक्के किसान ही हल चलाकर अखान यात्रा का रस्म निभाया. हांलांकि किसान अपने गोबर गढ्ढे में गोबर को काटकर आखान यात्रा मनाया. वहीं परम्परा के अनुसार घर की महिलाओं ने गोबर काटकर आने के बाद किसान का पैर धुलाकर हल्दी मिले तेल लगाकर अच्छी फसल होने की कामना की.
किसान धनंजय महतो ने बताया कि हाल पुन्हा या गोबर काट कर पहिला माघ को आखन यात्रा के रूप में मनाया गया. उन्होंने कहा कि हर साल बंगला कैलेंडर के अनुसार पहिला माघ को गोबर काटकर या हल चलाकर आखान यात्रा मनाया जाता है. उन्होंने कहा कि हल चलाने का रिवाज खत्म होते जा रहा है, यह चिंता का विषय है. उन्होंने अपनी परम्परा को बचाए रखने की अपील की.