तिरुलडीह (Manoj Swarnkar) 40 साल बाद तिरुलडीह के शहीद धनंजय महतो के परिजनों का सपना साकार हुआ. हालांकि शहीद धनंजय के परिजनों का सपना सरकार ने नहीं, बल्कि समाजसेवी सह आजसू नेता हरेलाल महतो ने पूरा किया. जहां हरेलाल की वजह से शहीद के आश्रितों को चार कमरे का पक्का मकान नसीब हुआ है. इतना ही नहीं हरेलाल महतो ने शहीद के पूरे परिवार के भरण- पोषण की जिम्मेवारी उठायी है.
शुक्रवार को नव निर्मित मकान के गृह प्रवेश कार्यक्रम में खुद हरेलाल महतो मौजूद रहे और शहीद धनंजय महतो के परिवार को नव निर्मित मकान में प्रवेश कराया. इस दौरान शहीद की पत्नी और पुत्र के साथ हत्याकांड के गवाह रहे शहीद धनंजय के साथी के आंखों में आंसू छलक पड़े.
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बता दें कि आज ही के दिन ठीक चालीस साल पूर्व 1982 में ब्लॉक में भ्रष्टाचार के विरोध में सिंहभूम कॉलेज चांडिल के छात्र रहे धनंजय महतो एवं अजीत महतो की तत्कालीन ईचागढ़ प्रखंड कार्यालय में ही गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. गोली पुलिस ने चलाई थी, मगर किसके आदेश से, इसका खुलासा घटना के 40 साल बाद भी नहीं हो सका है. आजतक धनंजय और अजीत महतो को शहीद का दर्जा भी नहीं मिला. उस वक्त झारखंड बिहार का हिस्सा हुआ करता था. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद सरकारें आई और गई. हर चुनावी घोषणा पत्र में धनंजय और अजीत महतो को शहीद का दर्जा देने की घोषणा की गई. शहीद का दर्जा तो दूर एक आदद मकान तक बनवा पाने में सरकार नाकाम रही.
पिछले विधानसभा चुनाव में इचागढ़ विधान सभा क्षेत्र से आजसू के उम्मीदवार रहे हरे लाल महतो ने चुनाव हारने के बाद भी शहीद धनंजय महतो के आश्रितों को चार कमरे का पक्का मकान बनवा कर दिया. साथ ही पूरे परिवार के भरण- पोषण का जिम्मा भी लिया. जिसे आज तक वे निभा रहे हैं.
शहीद धनंजय की बेवा ने बताया कि तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुधीर महतो ने उनके पुत्र उपेन महतो को नौकरी देने की घोषणा की थी, जो आज तक कागजों पर ही सिमट कर रह गई है. पूरा परिवार दाने- दाने को मोहताज है. मगर उनकी ओर किसी ने कभी कोई ध्यान नहीं दिया.
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शहीद धनंजय महतो की विधवा
वहीं धनंजय महतो के पुत्र उपेन महतो ने वर्तमान सरकार पर झूठे वादे करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा हरेलाल महतो ने चुनाव हारने के बाद भी वादा पूरा किया है. मगर चुनाव जीतने के बाद एक बार भी वर्तमान विधायक उनसे या उनके परिवार से मिलने नहीं पहुंची. उन्होंने हरेलाल महतो के प्रति आभार जताया.
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उपेन महतो (शहीद धनंजय महतो के पुत्र)
वहीं तिरुलडीह गोलीकांड के चश्मदीद और शहीद धनंजय महतो अजीत महतो के आंदोलन के सहयोगी रहे सिद्धेश्वर महतो की आंखें उक्त गोलीकांड को याद कर भर आयी. उन्होंने बताया कि 1982 में पूरे क्षेत्र में अकाल पड़ा था. सूखाग्रस्त घोषित जिला होने के बाद भी उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिल रहा था. प्रखंड में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ वे आंदोलनरत थे. इसी दौरान प्रखंड कार्यालय में ज्ञापन सौंप कर लौट रहे धनंजय और अजित महतो पर पुलिस ने गोली चला दी. जिसमें दोनों की मौत हो गई. तब से लेकर आज तक सरकार से दोनों को शहीद का दर्जा देने और उनके आश्रितों को नौकरी व अन्य सुविधाएं देने की मांग की जाती रही है. हर साल 21 अक्टूबर को शहीद स्थल तिरूल्डीह में उनकी याद में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाता है. जहां नेता- मंत्री सभी जुटते हैं. मगर आज तक शहीद के परिवार को कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई. आज समाजसेवी हरे लाल महतो ने शहीद के सपनों को साकार कर दिया.
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सिद्धेश्वर महतो (चश्मदीद)
वहीं समाजसेवी सह आजसू नेता हरे लाल महतो ने गृह प्रवेश के मौके पर शहीद के परिवार को हर संभव सहयोग करने का वचन दिया. उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान उन्होंने शहीद के परिवार से पक्का मकान बनाकर देने का वायदा किया था. भले चुनाव में उनकी जीत नहीं हुई, मगर आज शहीद के परिवार को पक्के मकान में गृह प्रवेश कराकर आत्मीय संतुष्टि हो रही है. उन्होंने झारखंड सरकार और झारखंड मुक्ति मोर्चा पर जमकर निशाना साधा, और कहा झामुमो ने कभी शहीदों का सम्मान नहीं किया, बल्कि शहीदों के नाम पर राजनीति की और उनके नाम का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए किया.
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हरेलाल महतो (आजसू नेता)
गृह प्रवेश कार्यक्रम के बाद सभी तिरुलडीह स्थित अजीत- धनंजय महतो समाधि स्थल पर पहुंचे. जहां सभी ने दोनों शहीदों की प्रतिमा पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए. इस दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया.
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