खरसावां झाड़खण्ड ओड़िआ समाज
कोल्हान प्रमण्डल के प्रतिनिधि नंदू कुमार पांडे ने एक प्रेस बयान जारी कर कहा कि सरायकेला- खरसावां तथा सिंहभूम के कोल- विद्रोह , महाराजा अर्जुन सिंह, जगु देवान, भूमिज विद्रोह के महानायक गंगा नारायण, चुआड़ विद्रोह के नायक रघुनाथ सिंह एवं ईस्ट इण्डिया कम्पनी को प्रतरोध करने वाले घालभूमगढ़ के राजा जगन्नाथ दल जैसे वीरों की धरती में कौन सी कमी रह गई, कि बिहार- ओडिशा प्रोविन्स से अलग हुए दिनांक 01 अप्रैल 1936 ओडिशा राज्य के गठन के पश्च्यात स्वतंत्र भारत के स्वतंत्रता के तुरंत बाद 18.मई 1948 में पुनः सरायकेला- खरसावां, सिंहभूम को बिहार में अस्थायी रूप से शामिल करने का निर्णय उस समय लिया गया जब महाराजा मयूरभंज ने मयूरभंज को एक स्वतंत्र प्रदेश की घोषणा की.
स्वतंत्र भारत में रियासतों को सरदार वल्लभ भाई पटेल के कहने पर विलय समझौते पर बर्ष- 1947 में भारतीय गणराज्य का ओडिशा राज्य में विलय हो गया था, विलय समझौते में भी, दिसंबर 1947 से 1949 तक, इसे बालासोर के कलेक्टर द्वारा प्रशासित किया गया था. बालासोर के कलेक्टर सरायकेला, खरसावां, सिंहभूम और चाईबासा की देखभाल कर रहे थे. सरायकेला- खरसावां, सिंहभूम (कोल्हान) के हो, मुंडारी, उरांव, ओड़िआ भाषा/ संस्कृति को नजरअंदाज करते हुए बर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों का परिणाम है. ‘सरायकेला’ और ‘खरसावा’ जो ओडिशा राज्य का हिस्सा थे, उन्हें वर्ष 1948 में सिंहभूम जिले में एकीकृत किया गया था, एवं बिहार राज्य में अस्थायी रूप में विलय कर दिया गया.
बंगाल/ बिहार/ ओडिशा प्रोविन्स के विभिन्न जिलों के लिए अंतिम सर्वेक्षण समझौता अलग- अलग है, जैसे; धालभूम के लिए, यह 1906 से 1911 के बीच था; 1925 से 1928 के बीच सरायकेला के लिए; 1908 से 1915 के बीच हजारीबाग के लिए; और 1913 से 1920 के बीच पलामू के लिए. स्वतंत्र भारत का पहला सर्वे सेटेलमेंट बर्ष 1964- 65, सरायकेला- खरसावां, तथा सिंहभूम (कोल्हान) प्रमण्डल के सैकड़ों वर्षों से गुजार- बसर करने वाले महान स्वतंत्रता संग्राम के वंशजों को भी 1932 के खतियान के कारण सरायकेला- खरसावां , तथा सिंहभूम (कोल्हान ) प्रमण्डल के वीर सपूतों तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के वंशजों के परिवारों के साथ भी प्रवासियों की तरह झारखंड की बर्तमान सरकार व्यवहार करना चाहती है, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है.