चाईबासा: हेमंत सोरेन सरकार के कैबिनेट में लाये 1932 के स्थानीय नीति का विरोध शुरू हो गया है. झारखण्ड राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने कहा कि राज्य सरकार अगर इस फैसले पर पुनर्विचार नहीं करती है तो इससे पूरा कोल्हान जलेगा.
गुरुवार को मामले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने कहा कि हेमंत सरकार की इस पहल से कोल्हान के 3 जिलों क्रमशः प. सिंहभूम , पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला- खरसावां के लाखों लोग स्थानीयता की परिभाषा से प्रभावित होंगे. उन्होंने कहा कि राज्य के कई जिलों में अलग- अलग भूमि सर्वे किया गया है. कोल्हान में यह सर्वे 1964- 1965 का है. 1932 के खतियान आधारित नीति लागू होने से कोल्हान के लोग झारखंड के मूलनिवासी नहीं माने जाएंगे.
कई जिलों के युवा रह जायेंगे वंचित
पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने कहा कि 1932 के स्थानीय नीति से कई जिलों के युवा सरकारी नौकरी, छात्रवृत्ति आदि से वंचित हो जाएंगे. हमारा विरोध इसी को लेकर है कि आखिर ऐसे नीति क्यों बनाई जा रही है. उन्होंने कहा आजादी के पहले जो भी सर्वे हुआ था वह कुछ विशेष लोगों के द्वारा किया गया था. आजादी के बाद इसका फायदा राज्य के आदिवासी- मूलवासी लोगों को नहीं मिला. जिसके कारण फिर से रिसेटेलमेंट का काम किया गया जो 1965 में पूरा हुआ, ताकि भूमिहीनों को अधिकार मिल सके.
सरकार ने चोरी छुपे इस नीति को लाने का काम किया
पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने कहा कि राज्य में महागठबंधन की सरकार है. राज्य के विकास के लिए क्या- क्या मुद्दा आएगा उसके लिए को- आर्डिनेशन कमेटी बनी है, लेकिन 1932 की नीति को ना ही को- आर्डिनेशन कमेटी में लाया गया, ना ही स्टैंडिंग कमेटी में. मतलब साफ है, कि सरकार ने चोरी- छुपे इस नीति को लाने का काम किया है, जो महागठबंधन के हित में भी नहीं है.