बोकारो: जिस वक्त दुनिया कोरोना महामारी से लड़ रही थी, उस वक्त झारखंड के बोकारो के दो शिक्षकों ने मिलकर बंजर भूमि में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की, जिसमें 14 महीने में फल लग गए हैं अब शिक्षक काफी खुश हैं.
बता दें कि वैश्विक महामारी कोरोना के दूसरे लहर के दौर में जब पूरी दुनिया त्राहिमाम कर रही थी. जब लोग जिंदगी से जंग लड़ रहे थे. जब हर कोई अपने वजूद को बचाने की लड़ाई लड़ रहा था, उस वक्त पीएम के मन की बात से प्रेरणा लेकर झारखंड के बोकारो जिले के दो सरकारी शिक्षकों दिनेश कुमार सिंह और बलदेव मांझी ने पेटरवार प्रखंड के चंदो गांव की पथरीली बंजर भूमि में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की. दोनों शिक्षकों ने पथरीली जमीन में एक एकड़ में ड्रैगन फ्रूट के 2000 पेड़ लगाए. इसमें इनको 8 लाख का खर्च आया. 14 महीने में पेड़ ने फल देना शुरू कर दिया है.
देखें video
विज्ञापन
ड्रैगन फूड के पौधे को हैदराबाद से मंगाया था
मूल रूप से यह विदेशी फल है. इसके ब्रिड झारखंड में नहीं मिलते हैं. देश में भी चुनिंदा राज्यों में इसके ब्रिड उपलब्ध हैं. हैदराबाद से इसका ब्रिड मंगाया गया. जो आज झारखंड के किसानों के लिए नजीर बन गया है. लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है. दूर- दूर से लोग अपने बच्चों के साथ यहां पहुंच रहे हैं और इस फल का स्वाद ले रहे हैं.
बाइट
बबिता देवी (बोकारो से आई महिला)
कैसे शुरू किया इस अनजान खेती को
दोनों शिक्षक चांदो हाई स्कूल में पढ़ाने का काम करते हैं. दिनेश कुमार सिंह बोकारो से इस स्कूल में पढ़ाने आया करते हैं. जबकि बलदेव मांझी इसी गांव के रहने वाले है. देश में जब कोरोना संक्रमण का दौर चल रहा था, सभी जगह लॉकडाउन लगा हुआ था. जिंदगी ठहर सी गई थी, उसी दौरान प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने ड्रैगन फ्रूट की खेती करने के लिए लोगों को प्रेरित किया. इसका फल खाने से लोगों के इम्यूनिटी को बढ़ाने सहित अन्य बीमारियों में इसे लाभदायक बताया गया था.
इसके बाद दिनेश कुमार सिंह ने अपने सहयोगी शिक्षक बलदेव मांझी के पास इस खेती को करने का प्रस्ताव रखा. बलदेव मांझी ने एक पथरीली जमीन एक एकड़ खरीद रखी थी. इसी में दोनों ने ड्रैगन फ्रूट की खेती करने की ठानी. उसके बाद पथरीली बंजर भूमि को ड्रैगन की खेती के लिए तैयार किया. इस पेड़ को लगाने के लिए सीमेंट का स्ट्रक्चर तैयार किया गया. उसके बाद 500 सीमेंट का स्ट्रक्चर बना कर उसे गड़ा गया. एक एकड़ में लगाते हुए एक स्ट्रक्चर में 4 पेड़ को लगाने का काम किया गया. आज 14 महीने बाद इसमें फल आने लगे हैं. और इसकी बिक्री भी इन लोगों ने शुरू कर दी है. वैसे बाजार नहीं मिलने से दोनों शिक्षक परेशान हैं. सरकार से दोनों चाहते हैं कि इसका बाजार उपलब्ध कराया जाए. क्योंकि ड्रैगन की खेती 20 वर्षों के लिए होती है और एक पेड़ 20 वर्षों तक लगातार फल देने का काम करता है.
क्या कहते हैं शिक्षक
इस संबंध में दिनेश कुमार सिंह कहते हैं एक शिक्षक हमेशा समाज को दिशा दिखाने का काम करता है. हम लोगों ने किसानों की आय को दुगनी करने के लिए इस खेती को करने का काम किया है और किसानों को भी दिशा दिखाने का काम हम लोग कर रहे हैं. यह विदेशी फल है और यह कैक्टस प्रजाति का होता है. यह फल कई गंभीर बीमारियों के लिए लाभदायक माना जाता है. ड्रैगन फ्रूट में एंटीवायरस और एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है. वर्तमान में यह फल बाजार में 450 रुपए प्रति किलो की दर से बिक रहा है.
बाईट
दिनेश कुमार सिंह (शिक्षक)
बाईट
बलदेव मांझी (शिक्षक)
इस ड्रैगन फ्रूट की खेती को देखने के लिए बोकारो से भी लोग अपने बच्चों के साथ पहुंच रहे हैं. इस फल को खाने वाले लोगों का कहना है यह फल खाने में काफी स्वादिष्ट है और बाजार के अन्य फलों से अलग है. निश्चित तौर पर दोनों शिक्षकों के इस पहल ने न सिर्फ पीएम मोदी के सपनो को साकार किया है, बल्कि देश के उन लाखों किसानों के लिए नजीर पेश किया है, जो अपनी आय दुगनी करने के लिए पारंपरिक खेती और सरकार के भरोसे बैठे हैं. इन दोनों शिक्षकों ने अपने जज्बे से साबित कर दिखाया है कि, शिक्षक केवल किताबी ज्ञान देते तक ही सीमित नहीं होते बल्कि शिक्षा का व्यापक उपयोग कर उसे जमीन पर उतारने का माद्दा भी रखते हैं. इन शिक्षकों के हौंसले को हमारा नमन है.
बाइट
अंशिका
Exploring world
विज्ञापन