सरायकेला/ गम्हरिया Special Report By Pramod Singh
देश के युवा आधुनिक शिक्षा पद्धति के जरिये तालीम लेकर ऊंचे- ऊंचे ओहदों पर भले पहुंच कर देश- दुनिया में अपना परचम लहराते हैं, मगर आधुनिकता की अंधी दौड़ में युवा यह भूल जाते हैं कि भारत के गौरवशाली अतीत ने ही आधुनिकता की नींव रखी थी, जिसपर चलकर भारत आधुनिक विश्व गुरु बनने की रेस में सबसे आगे चल रहा है. मगर इसके लिए कठोर साधना की आज भी उतनी ही जरूरत है, जैसी साधना गुरुकुल परंपरा में होती थी. आधुनिक साधना में भटकाव की संभावनाओं से इंकार नहीं कर सकते मगर गुरुकुल परंपरा की साधना से शिक्षा के साथ संस्कार की भी प्राप्ति होती है, जिसकी आज के युवाओं में घोर कमी है.
यहां हम बात कर रहे हैं झारखंड के सरायकेला- खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड अंतर्गत सांपड़ा स्थित सप्तर्षि गुरुकुल की. आधुनिकता की अंधी दौड़ में भी सप्त ऋषि गुरुकुल अपनी अलग पहचान रखता है. भले यहां सरकार के स्तर पर कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है, मगर इस गुरुकुल ने गुरु शिष्य परंपरा और प्राचीन गुरुकुल शिक्षा पद्धति को जीवंत रखा है. इस गुरुकुल में वैसे बच्चे तालीम लेने आते हैं, जो या तो अनाथ हैं, या जिनके माता-पिता अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा मुहैया कराने में असक्षम है. इस गुरुकुल का संचालन काफी कष्ट से होता है, मगर यहां के बच्चों के तालीम को देखकर एकबारगी मन मोहित हो जाता है. बच्चों के मुंह से प्रातः कालीन वंदना से लेकर रात्रि शयन वंदना तक निकलनेवाला संस्कृत का श्लोक पूरे वातावरण को मंत्रमुग्ध कर देता है. आप भी सुने…..
video
video
देखा आपने आपको यकीं नहीं हुआ, न हमें भी नहीं हो रहा था, मगर ये हकीकत है, जिसे सच साबित करने में जुटे हैं गुरुकुल के आचार्य रत्नाकर शास्त्री और शेफाली मल्लिक, हालांकि आचार्य अब थक चुके हैं. झारखंड गठन के 1 साल बाद यानी साल 2001 में जब पंडित प्रकाश नंद ने इस गुरुकुल की स्थापना की थी, तब ऐसा लग रहा था कि सरकार और प्रशासन की ओर से इसे आर्थिक और वैधानिक सहयोग मिलेगा, मगर 21 साल बाद भी सप्त ऋषि गुरुकुल सरकारी अधिमान्यता के लिए मोहताज है. कुछ औद्योगिक घरानों के फंडिंग से गुरुकुल का संचालन हो रहा है, मगर धीरे- धीरे अब उद्यमी भी हाथ खींचने लगे हैं. नतीजा बच्चों को भरपेट भोजन भी नहीं मिल पा रहा है. फिर भी आचार्य पंडित रत्नाकर शास्त्री साधना में जुटे हैं और यहां अस्त्र- शस्त्र और वेद की तालीम बच्चों को दे रहे हैं. उन्हें शेफाली मल्लिक सहयोग कर रही है. कुछ ऐसे भी बच्चे हैं, जिन्होंने यहां से तालीम लिया मगर अब वे यहीं रहकर भावी पीढ़ी को तालीम दे रहे हैं. इनका मानना है कि भारत आधुनिक विश्व गुरु तभी बन सकता है, जब बच्चों में नैतिक आध्यात्मिक और वैदिक संस्कार विद्यमान होंगे. और ये इसके लिए संकल्पित हैं.
बाईट
आचार्य पंडित रत्नाकर शास्त्री
क्या कहना है बच्चों को वैदिक शिक्षा दे रहीं शेफाली मल्लिक का सुनें
बाईट
शेफाली मल्लिक
इन बच्चों के मुंह से वैदिक मंत्रोच्चार तो आपने सुन लिया, मगर दिल थाम कर बैठिए अभी इस गुरुकुल की एक और साधना की ओर आपको लिए चलते हैं जिसे देखकर आप दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर हो जाएंगे. जैसा कि हमने पहले ही कहा था, कि यहां न केवल शस्त्र- वेद बल्कि अस्त्र चलाने का भी ज्ञान दिया जाता है. यहां शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों को पूरी तरह से गुरुकुल परंपरा में ढाला जाता है. इनमें नैसर्गिक संस्कार विकसित किए जाते हैं. उसका जीता जागता प्रमाण यहां शिक्षा ग्रहण करने वाला सूरज आर्य है, जिसने अपने कठोर साधना से द्वापर युग के अर्जुन की याद ताजा कर दिया है.
देखिए आज के अर्जुन की साधना
video
कलियुग का अर्जुन सूरज आर्य इसी गुरुकुल में तालीम लेकर ऐसा साधक बन बैठा जो न केवल हाथों से बल्कि मुंह और पैर से भी हर मुद्रा में अचूक निशाने लगाने में पारंगत हो चुका है. मगर दुर्भाग्य देखिए इसकी तालीम गुरुकुल केंपस तक ही सीमित होकर रह. गई यदा- कदा रामनवमी अखाड़ों में करतब दिखाकर सुर्खियां बटोरता रहा, मगर सरकार, शासन- प्रशासन का ध्यान इस ओर कभी आकर्षित नहीं हुआ. एकाध बार सरकारी बाबुओं ने यहां का दौरा जरूर किया मगर, कोरा आश्वासन देकर चलते बने. किसी ने सूरज के अंदर छिपी प्रतिभा का आकलन नहीं किया. थक हार कर सूरज यही अपने आचार्य का सहयोग करने में जुट गया और जुट गया आधुनिक भारत को विश्व गुरु बनाने के अभियान में. सूरज आज यहां तालीम लेने वाले बच्चों को अस्त्र- शस्त्र और वेद का शिक्षा दे रहा है.
बाईट
सूरज आर्य
हालांकि झारखंड इस मामले में परिपूर्ण है. मगर वे सभी हाईटेक तालीम लेकर देश- दुनिया में नाम रोशन कर रहे हैं.
अंत में
दरअसल सप्त ऋषि गुरुकुल की स्थापना वैसे बच्चों के लिए की गई थी, जो अनाथ हैं. जो महंगी शिक्षा ग्रहण कर पाने में असक्षम है. खासकर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के बच्चों में बौद्धिक विकास सृजन करने के उद्देश्य से इस गुरुकुल की स्थापना की गई थी, मगर झारखंड अपने गठन काल से ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. जिसमें सांपड़ा का यह सप्त ऋषि गुरुकुल भी शामिल है. भारत वाकई में अगर आधुनिक विश्व गुरु बनना चाहता है, तो ऐसे गुरुकुल परंपरा को जीवंत रखने के लिए शासन- प्रशासन को आगे आना ही होगा.