सरायकेला: ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में कल्चरल डेवलपमेंट फाउंडेशन की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में सरायकेला के छऊ मुखौटा कलाकार गुरु सुशांत महापात्र को ‘गुरु ब्रम्हा एवार्ड’ से सम्मानित किया गया. पुरी में आयोजित इंटरनेशनल मेगा डांस फेस्टीवॉल ‘अप्सरा-2022’ के उद्घाटन समारोह में हाईटेक ग्रुप के चैयरमेन डॉ. तिरुपति पाणीग्राही ने अंगवस्त्र व प्रशस्ती पत्र दे कर सम्मानित किया.
गुरु सुशांत महापात्र को यह सम्मान छऊ नृत्य का मुखौटा तैयार करने के लिये दिया गया. साथ ही कई अन्य कलाकारों को भी सम्मानित किया गया. इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में देश- विदेश के विभिन्न क्षेत्रों से कलाकार पहुंचे थे. मौके पर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया. छऊ नृत्य में मुखौटा का विशेष महत्व है. मुखौटा से ही सरायकेला शैली के छऊ को चार चांद लगा है. कहा जाता है कि शुरुआत के समय में सरायकेला शैली के छऊ नृत्य में मुखौटा का उपयोग नहीं होता था. लगभग सौ साल पहले सरायकेला के गुरु प्रशन्न महापात्र ने सरायकेला शैली के छऊ नृत्य के लिए मुखौटा तैयार कर इसे नृत्य में समाहित किया.
इसके बाद से ही सरायकेला शैली के छऊ की लोकप्रियता बढ़ी. आधुनिक मुखौटे से ही सरायकेला शैली के छऊ को एक अलग पहचान मिली. सरायकेला के गुरु प्रसन्न महापात्र का परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी सरायकेला शैली छऊ नृत्य के लिये मुखौटा तैयार कर विरासत में मिली इस कला को आगे बढ़ रहा है. गुरु प्रशन्न महापात्र के बाद उनके भतीजे सुशांत कुमार महापात्र ने इस कला को आगे बढ़ाने का कार्य किया.
अब तीसरी पीढ़ी में सुशांत कुमार महापात्र के पुत्र सुमित महापात्र भी छऊ मुखौटा तैयार कर रहे है. विरासत में मिली मुखौटा निर्माण कला को महापात्र परिवार के तीसरी पीढ़ी के सुमित महापात्र अब आगे बढ़ा रहे हैं. 35 वर्षीय सुमित महापात्र बताते हैं कि पांच वर्ष की आयु में वे अपने पिता सुशांत महापात्र से मुखौटा निर्माण के साथ- साथ छऊ नृत्य भी सीखने लगे थे. सुमित के तैयार किए हुए मुखौटे अब देश- विदेश में धूम मचा रहे हैं. सुमित के तैयार मुखौटे प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक को भेंट किए गए हैं.
उन्होंने बताया कि भले ही मुखौटा निर्माण की कला से अधिक पैसा नहीं मिलता है, विरासत में मिली इस कला को बचाए रखने की चाहत ने ही कला से जोड़े रखा है. सुमित की इच्छा है कि विरासत में मिली इस कला को उनका परिवार आगे बढ़ाता रहे.