दूसरे जिलों में नाम कमाकर सुर्खियां बटोरनेवाले पुलिस अधिकारियों का सरायकेला जिले में पदस्थापन होते ही धार कुंद हो जाते हैं आखिर क्यों ! आखिर ऐसे अधिकारी किस काम के यह एक यक्ष प्रश्न है, जिसका जवाब हर कोई जानना चाहता है.
खास कर हत्या जैसे संगीन मामलों के नामजद आरोपियों को भी अगर पुलिस गिरफ्तार करने में विफल होती है तो सवाल उठने लाजिमी हैं.
संजय कुमार महतो
आदित्यपुर और आरआईटी में हाल के दिनों में हुए चार हत्याकांडों का जो हश्र हुआ वह किसी से छिपा नहीं है, एक मे तो पुलिस ने नवसीखिया सड़कछाप गुंडे को सलाखो के पीछे भेजकर किसी तरह अपनी लाज बचा ली. 14 अप्रैल को उषा रानी महतो महतो हत्याकांड के आरोपी को पुलिस ढूंढती रह गई और राजेश ने
पुलिस की किलेबंदी पर गुगली डालकर कोर्ट में सरेंडर कर दिया.
वहीं 3 मई को हुए कार्तिक गोप हत्याकांड के नामजद आरोपी सुभाष प्रामाणिक, बजरंग गोराई और मुकेश दास उर्फ गुलटू के साथ अभी पुलिस की लुकाछिपी जारी है.
दीपक भोय हत्यारोपी
चलिए ये तो हुई आदित्यपुर पुलिस की जांबाजी. आरआईटी पुलिस भी कहां पीछे रह सकती है. यहां के बहादुर अधिकारी की भी खूब चर्चा हुई थी, मगर 27 अप्रैल को बनता नगर निर्मल चौक पर हुए संजय महतो हत्याकांड मामले में भी पुलिस को अबतक कोई सफलता नहीं मिली, जबकि उक्त हत्याकांड में भी दीपक भोय नामक अपराधी नामजद है. अब जरा सोचिए जिन कांडों में कोई सुराग न मिले उसका क्या होगा ? ऐसे में जिले के बहादुर और जांबाज अधिकारियों की धार तेज करने के लिए कप्तान को सख्त फैसले लेने की जरूरत है.