Desk Report घोर वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहे हैं सहारा इंडिया परिवार के एक कार्यकर्ता ने समूह के मुखिया सुब्रत राय सहारा के नाम एक दर्दनाक और दिल दहला देने वाला पत्र लिखा है. पत्र सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है.
पोस्ट मैं कार्यकर्ता ने लिखा है
परम पूज्य अभिभावक सहाराश्री महोदय
महोदय
वर्तमान हालातों से आप भली- भांति अवगत होंगे। निश्चय ही एक कर्तव्यनिष्ठ अभिभावक होने के नाते आप अपने 12 लाख समर्पित कार्यकर्ताओं की पीड़ा और मनोदशा महसूस कर रहे होंगे। हम सभी इस बात से पूरी तरह से सहमत हैं कि संस्थान के वर्तमान परिस्थितियों के लिए कार्यपालिका (सेबी) की हठधर्मिता, विधायिका- न्यायपालिका की नेत्रहीनता और पत्रकारिता के असंवेदनशीलता जिम्मेदार हैं, मगर माननीय महोदय आपके जीतने के जुनून ने 12 लाख कार्यकर्ताओं के समक्ष अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। निश्चित जीत आपकी तय है, मगर सोचिए उस जीत को हासिल करने के लिए आपको कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। संस्थान का वजूद जरूर रहेगा। मगर बीते 44 सालों की कठोर साधना से आपने जिन योद्धाओं (कार्यकर्ताओ) की फौज तैयार की क्या वो रहेंगे ? महोदय निश्चय ही संस्था जीत का जश्न मनाएगी, मगर उस जश्न को आप किनके साथ मनाएंगे यह कभी सोचा आपने ? जिन उन्मादी कार्यकर्ताओं के अंदर आपने सभ्रांत जीवन शैली का जुनून पैदा किया आज लागभग (कुछएक फ्रेंचाइजी गार्जियनो और अथाह दौलत कमा चुके वरिष्ठों को छोड़कर) धराशायी हो चुके हैं। कई आत्महत्या कर चुके हैं, कई कतार में खड़े हैं, कभी भी ऐसा कर सकते हैं। क्योंकि वो अपने बच्चों को भूखा नहीं देख सकते, अपने माता पिता और पत्नी की मजबूरी और बेबसी सहन नहीं कर सकते। कईयों के बच्चों की पढ़ाई छूट गई, कई बीमार हो गए। सम्मानित निवेशकों के ताने सुन- सुन कर घरों से निकलना बंद कर दिया। कई बुजुर्ग सम्मानित निवेशक जिनका एमआईएस ही आसरा था पाई- पाई को मोहताज हो गए। वैसे निवेशक भी हैं जो समय पर पैसे नहीं मिलने के कारण असमय काल- कवलित हो गए। महोदय ऐसी हठधर्मिता का क्या फायदा जब पूरे साम्राज्य का ही पतन हो गया। महोदय क्या उन बच्चों का बचपन वापिस लौटेगा, जिनकी पढ़ाई छूट गयी ? क्या वैसे जुनूनी कार्यकर्ता वापस आएंगे जिन्होंने आत्महत्या कर ली ? क्या वैसे उन्मादी कार्यकर्ता वापस लौटेंगे जो बेरोजगारी और सम्मानित जमाकर्ताओं के ताने सुनकर पलायन कर चुके हैं ? भले संस्थान की जीत के बाद सम्मानित निवेशक दोबारा आ भी जाएं, मगर उन्हें लाने वाला जुनूनी कार्यकर्ता नहीं रहेगा। महोदय निश्चय ही इस जंग ने हर उस मंजर को दिखा दिया, जिसकी कल्पना कभी भी संस्थान से जुड़े कार्यकर्ताओं ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। अब सब्र के इम्तिहान की पराकाष्ठा की सारी हदें पार कर चुकी है। जो बचे हैं, उन्हें बचा लीजिए। यही फरियाद हम सभी कर रहे हैं। मेरी इस फरियाद को आप या आपके अधीनस्थ मातहत किस नजरिए से देखते हैं, यह मुझे नहीं पता मगर यही सत्य है। उम्मीद की एकमात्र किरण आप ही, बचा लीजिए
एक कार्यकर्ता
देखें पोस्ट की प्रति
निश्चित तौर पर सहारा सेबी विवाद के बाद उपजे हालात ने सहारा के निवेशकों और एजेंटों के समक्ष यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया है. आखिर देश की कार्यपालिका विधायिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता इस मामले में गंभीर क्यों नहीं है ! क्यों न्यायपालिका सड़क से लेकर सदन तक मचे कोहराम को नजरअंदाज कर रही है ? इस पत्र ने एक एजेंट के दर्द को कुरेद कर रख दिया है. पिछले 9 साल से सहारा सेबी विवाद के कारण जो परिस्थितियां पैदा हुई है, उससे कहीं ना कहीं वर्तमान केंद्र सरकार की कार्यशैली भी कटघरे में खड़ी होती नजर आ रही है. बड़े उम्मीद के साथ सहारा सेबी- विवाद के बाद सहारा के कार्यकर्ताओं ने सत्ता परिवर्तन में अहम भूमिका निभाई थी, मगर आज सब धूमिल प्रतीत हो रहा है.