8 मई को अंतरराष्ट्रीय मदर्स डे है. मगर क्या किसी खास दिन मां के लिए समर्पित करने से मां शब्द की सार्थकता सिद्ध हो जाएगी ? क्या मां का कर्ज किसी खास दिन को यादगार बनाने से उतर जाएगा ? नहीं बिल्कुल नहीं…. मां- मां होती है. उसका कोई वैकल्पिक रिश्ता नहीं हो सकता. मां को ऐशो आराम और दौलत नहीं मां को उसका लाल उसके जिगर का टुकड़ा हर वक्त उसकी आंखों के सामने हो यही हर मां की अभिलाषा होती है.
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चलिए हम आपको जमशेदपुर लिए चलते हैं. जहां मां की ममता से मरहूम बच्चों की सेवा में जुटी लक्खी दास का कहना है कि आज मातृ सत्ता से पितृ सत्ता की ओर लोग बढ़ रहे हैं. मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए की मां हर रूप में मां होती है. मां का कोई विकल्प नहीं हो सकता. बता दें कि जमशेदपुर स्थित आदर्श सेवा संस्थान में लक्खी अनाथ बच्चों की देखरेख करती है.
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लक्खी ही इनकी मां है, इनकी आया है, इनकी बहन है इनका सब कुछ है. लक्खी बताती है आज के बच्चे अपनी मां को ऐशो आराम भरी जिंदगी तो दे सकते हैं, मगर मां को उससे कहीं ज्यादा उसका लाल उसकी आंखों के सामने हो यह चाहिए. इसके लिए उन्होंने संयुक्त परिवार की वकालत की. उन्होंने कहा कि संयुक्त परिवार में रिश्तों की अहमियत होती है. बच्चों का सही परवरिश संयुक्त परिवार में ही संभव है. उन्होंने बताया कि किसी खास दिन पर मां को याद करना और उसे प्यार करने से अच्छा हर दिन मां को प्यार करें और मां को सम्मान दें.
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लक्खी दास (केयरटेकर- आदर्श होम)
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