Desk आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है. सभी संघर्षशील पत्रकारों एवं मीडियाकर्मियों को बधाईयां. प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने के पीछे यूनिस्को का मकसद सरकारों को यह याद दिलाना है कि उन्हें प्रेस की आजादी के प्रति प्रतिबद्धता के सम्मान करने की जरूरत है. यह मीडिया कर्मी, पत्रकारों को प्रेस की आजादी और व्यवासायिक मूल्यों की याद करने का भी दिन है.
यह दिन मीडिया के उन लोगों के समर्थन के लिए है जो प्रेस और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए काम करते हुए विरोध और जुल्म का शिकार हुए.
तीस साल बाद भी पत्रकारों एवं पत्रकारिता के अस्तित्व को लेकर संघर्ष जारी है. प्रेस की स्वतंत्रता (Freedom of Press) को लेकर दुनिया भर में चर्चाएं होती हैं. लोकतंत्र में तो उसे चौथा स्तंभ कहा जाता है. दुनिया के कई देशों में प्रेस (Press) यानि अभव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रतीक को आजादी नहीं हैं और लोगों को सही जानकारी तक पहुंचने का अधिकार से वंचित रखा जाता है. ऐसा अक्सर देश के प्रति खतरे के नाम पर किया जाता है. दुनिया भर में प्रेस की आजादी को सम्मान देने और उसके महत्व को रेखांकित करने के लिए 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (World Press Freedom Day) मनाया जाता है. आज प्रेस और उसके अन्य आधुनिक स्वरूप जिसे मीडिया भी कहा जाता है, की अहमियत जितनी है उतनी पहले कभी नहीं हुआ करती थी. सूचनाओं के आदान प्रदान के माध्यम इंटरनेट के कारण बहुत तेजी से हो पा रहा है. ऐसे में प्रेस की स्वतंत्रता खतरे में पड़ने का खतरा बढ़ गया है. यूनेस्को 1997 से हर साल 3 मई को विश्व स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. इस मौके पर गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम पुरस्कार भी दिया जाता है. यह पुरस्कार उस संस्थान या व्यक्ति को दिया जाता है जिसने प्रेस के आजादी के लिए उल्लेखनीय कार्य किया हो. अनोखी बात यह है कि भारत के किसी भी पत्रकार या संस्थान को अभी तक यह पुरस्कार नहीं दिया गया है. विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की उपज 1991 में विंडहोएक में हुई यूनेस्को कॉन्फ्रेंस से हुई थी. यह कॉन्फ्रेंस तीन मई को खत्म हुई थी जब स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और बहुलवादी प्रेस के लिए ऐतिहासिक विडहोएक घोषणापत्र अपनाया गया था. 30 साल बाद भी लोकहित आज भी उतना ही अहम है जितना कि तब था.
जरूरत है पत्रकारिता के वजूद को जिंदा रखने की. इस दिशा में सामूहिक पहल होगी तभी पत्रकारिता का अस्तित्व जिंदा रहेगा. पत्रकार सुरक्षा कानून को सख्ती से लागू करनी होगी. मीडिया संस्थानों को क्रिमिनल जर्नलिज्म की मानसिकता का त्याग कर तथ्यात्मक खबरें दिखानी होगी. समालोचना होनी चाहिए पत्रकारिता में तब मीडियाकर्मियों और पत्रकारिता का अस्तित्व बना रहेगा.