सरायकेला (Pramod Singh) झारखंड के कुड़मी समाज द्वारा कुड़मी को एसटी में शामिल करने और कुड़मालि भाषा को संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर आंदोलन को पश्चिम बंगाल के कुड़मी नेता अजीत महतो ने एकबार फिर से झटका दिया है.
जहां अजीत महतो ने सरायकेला के बड़ा कांकड़ा मैदान में आयोजित कुड़मी समुदाय के महाजुटान में बने मंच साझा करने से पूर्व झारखंड पीपुल्स पार्टी के संस्थापक और घाटशिला के पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा के सामने कार्यक्रम में वृहद झारखंड की मांग ना उठाने की शर्त रख डाली. जिससे सूर्य सिंह बेसरा तिलमिला उठे. हालांकि मंच पर उन्होंने दिल की भड़ास निकालने के बजाए चुप रहना ही जरूरी समझा, मगर इशारों ही इशारों में उन्होंने आगे की लड़ाई एकला चलो के तर्ज पर लड़ने के संकेत दिए हैं.
वहीं मौके की नजाकत को देखते हुए मंचासीन जमशेदपुर के पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो ने मोर्चा संभाल लिया और दोनों नेताओं से सामंजस्य बनाकर कार्यक्रम सफल बनाने की अपील की. वही बंगाल के दिग्गज कुड़मी नेता अजीत महतो ने मंच पर राजनीतिक बयानबाजी करने से बचने की नसीहत देते हुए कहा यदि मंच पर राजनीतिक बयानबाजी की गई तो वे इसका विरोध करेंगे.
क्या है विवाद का कारण
दरअसल विवाद का कारण पिछले दिनों सूर्य सिंह बेसरा और जमशेदपुर के पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो द्वारा बृहद झारखंड और कुड़मी को एसटी का दर्जा देने के लिए एकजुट होकर आंदोलन करने की घोषणा के बाद हुआ है. कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था, मगर दोनों नेताओं की एंट्री से आंदोलन की धार थोड़ी कमजोर हो गई. कार्यक्रम को सफल बनाने और समाज को एकजुट करने में झारखंड आंदोलनकारी हरमोहन महतो ने कड़ी मेहनत की, मगर उनके मेहनत पर पानी फिर गया. हालांकि बाद में कार्यक्रम हुआ और वक्ताओं ने समाज की एकता और कुड़मी को एसटी का दर्जा देने एवं कुड़मालि भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध करने की मांग को लेकर पुरजोर आंदोलन करने को लेकर एकजुट होने का आह्वान किया.
अजीत को क्यों हुई आपत्ति
दरअसल अजीत महतो पश्चिम बंगाल की राजनीति करते हैं. पश्चिम बंगाल की राजनीति में उनका कद काफी ऊंचा है. पिछले दिनों कुड़मी को एसटी का दर्जा देने की मांग को लेकर पश्चिम बंगाल में हुए रेल रोको आंदोलन को सफल बनाने में उनकी अहम भूमिका रही थी. इतना ही नहीं पिछले दिनों जमशेदपुर में आयोजित सम्मान समारोह में भी उन्होंने झारखंड के कुड़मी समुदाय द्वारा आंदोलन में अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने से नाराजगी जताई थी. जिसके बाद खूब हंगामा हुआ था. एक बार फिर से सरायकेला में आयोजित समाज के महा जुटान में उन्होंने सूर्य सिंह बेसरा के साथ सशर्त मंच साझा करने को लेकर बखेड़ा खड़ा कर दिया. उनका कहना था कि सूर्य सिंह बेसरा ने जिस तरह से बृहत झारखंड में पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के कुछ जिलों को शामिल करने की वकालत की है, ऐसे में उनके शर्तों पर मंच साझा करना सही नहीं होगा. उनके बयानों से पश्चिम बंगाल की राजनीति में प्रतिकूल असर पड़ा है. वहां उनका विरोध हो रहा है.
सूर्य सिंह बेसरा हुए खामोश
अपनी शैली में राजनीति के लिए जाने जानेवाले झारखंड के दिग्गज राजनेताओं में शुमार आंदोलनकारी नेता घाटशिला के पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने मौके की नजाकत को देखते हुए शांत रहना ही जरूरी समझा उन्होंने इस संबंध में पूछे जाने पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया उन्होंने कहा इस वक्त उनका इस विषय पर कुछ भी कहना सही नहीं होगा. यूं कह सकते हैं, कि हाल के दिनों में राजनीतिक हाशिए पर चल रहे सूर्य सिंह बेसरा और जमशेदपुर के पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो के लिए बड़ा कांकडा के मंच पर “चले थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास वाली कहावत” चरितार्थ होती है. सूर्य सिंह बेसरा इस अपमान का किस तरह बदला लेंगे यह आनेवाला वक्त तय करेगा.
Reporter for Industrial Area Adityapur