आदित्यपुर: सरायकेला- खरसावां जिले के आदित्यपुर शहरी स्वास्थ्य केंद्र की लापरवाही और स्वस्थ्य विभाग के ढुलमुल रवैये की वजह से एक नवजात जिसने अभी दुनिया का हवा भी नहीं देखा आज सरकारी मशीनरी की वजह से दम तोड़ने के कगार पर पहुंच गया है. भगवान न करे उस नवजात के साथ कुछ अनहोनी हो, मगर डॉक्टरों के मुताबिक बच्चे की स्थिति बेहद नाजुक बनी हुई है.
क्या है मामला
दरअसल इसी महीने की 15 तारीख को आदित्यपुर रेलवे कॉलोनी हरिजन बस्ती निवासी मनोज मुखी अपनी गर्भवती पत्नी साहिबा मुखी को प्रसव पीड़ा होने के बाद आदित्यपुर शहरी स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव के लिए शाम करीब 5:30 बजे के आसपास पहुंचा. जहां डॉक्टर की गैरमौजूदगी में नर्सों ने प्रसव कराया, मगर बच्चा गर्भवती के पेट में ही फंस गया काफी प्रयास के बाद आधी रात को किसी तरह महिला का प्रसव कराया गया. हैरान करनेवाली बात ये है कि इस दौरान किसी भी डॉक्टर ने गर्भवती की सुध नहीं ली, जबकि स्वास्थ्य केंद्र में तीन- तीन डॉक्टरों की प्रतिनियुक्ति है. आनन- फानन में नर्सों ने बच्चे को मेडिनोवा नर्सिंग होम ले जाने की सलाह दी. मरता क्या न करता परिजन नर्सों के कहने पर बच्चे को मेडिनोवा नर्सिंग होम ले गए. यहां आयुष्मान कार्ड के तहत बच्चे को भर्ती नहीं लिया गया, जिसके बाद परिजन उपायुक्त और सिविल सर्जन के पास शिकायत लेकर पहुंचे. उपायुक्त के निर्देश पर सिविल सर्जन ने पहल की और मेडिनोवा प्रबंधन को बच्चे को भर्ती लेने और इलाज करने का निर्देश दिया. जहां पिछले 16 दिनों से आयुष्मान योजना के तमत बच्चे का ईलाज डॉक्टर राजेश कुमार की देखरेख में चल रहा है. बताया जा रहा है कि बच्चे की स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है. परिजन इतने सक्षम नहीं हैं कि किसी बड़े अस्पताल में बच्चे का इलाज करा सकें. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या नवजात दुनिया देखने से पहले ही दम तोड़ देगा ? बच्चे को बचाने के लिए नर्सिंग होम के पास पर्याप्त संसाधन हैं ? यदि नहीं तो क्या आयुष्मान योजना के तहत बिल के लिए बच्चे को डिटेन किया जा रहा है ? स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन बच्चे को लेकर कितना गम्भीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 16 दिनों बाद भी न तो सिविल सर्जन ने नर्सिंग होम जाकर बच्चे की सुध ली न ही दोषी स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों एवं नर्सों के खिलाफ कोई कार्रवाई की.
कितना सुरक्षित संस्थागत प्रसव
इस मामले ने साफ कर दिया है कि संस्थागत प्रसव को लेकर बड़े – बड़े दावे करने वाली स्वास्थ्य विभाग आज भी महिलाओं के सुरक्षित प्रसव कराने को लेकर गंभीर नहीं है. आदित्यपुर शहरी स्वास्थ्य केंद्र में संस्थागत प्रसव के नाम पर भले दो – दो डॉक्टरों के साथ नर्सों की तैनाती है मगर डॉक्टर सरकारी मशीनरी का वो हिस्सा हैं जिन्हें मानवीय संवेदना से कोई लेनादेना नहीं और नर्स को इसी में खुशी मिलती है कि किसी तरह से बच्चे का प्रसव हो जाये और उन्हें नजराना मिल जाए, मगर जिस परिवार पर मुसीबत आए उसे सहारा कौन देगा ये बड़ा सवाल है. बहरहाल समय रहते यदि सरकारी मशीनरी सक्रिय नही हुई तो बच्चे को बचा पाना मुश्किल होगा.हालाकि इस संबंध में सिविल सर्जन से बात करने की कोशिश की पर उन्होंने यह कहकर फों काट दिया कि अभी मीटिंग में हूं, फ्री होकर बात करता हूं, मगर आजतक उन्होंने बात करना जरूरी नहीं समझा.
Reporter for Industrial Area Adityapur