यूपी चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. सियासी दांव- पेंच और जोड़- तोड़ की सियासत शुरू हो चुकी है. इन सबके बीच विगत 9 साल से घोर वित्तीय संकट झेल रहे सहारा समूह के कार्यकर्ता क्या यूपी चुनाव में निर्णायक साबित होंगे ?
ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 2014 के आम चुनाव में सहारा के 12 लाख कार्यकर्ताओं ने ऐसा किया था. तत्कालीन यूपीए सरकार ने सहारा समूह को सेबी के माध्यम से आर्थिक और कानूनी उलझनों में फांसने का काम किया था, जिससे आजतक सहारा समूह पार नहीं पा सका है. हालात बद से बदतर हो चुके हैं. देशभर में फैले सहारा के साम्राज्य कुंद पड़ चुके हैं अब शीर्ष अदालत के निर्णय पर समूह का भविष्य टिका है.
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सुब्रत रॉय द्वारा सोनिया गांधी पर किए गए टिप्पणी की बड़ी कीमत चुका रहा समूह
दरअसल देशभक्ति और राजनीतिक रसूखदारों से नजदीकी संबंधों के गुरुर में चूर सहारा समूह के मुखिया ने सोनिया गांधी को विदेशी मूल का बताते हुए प्रधानमंत्री बनने का विरोध किया था. उस वक्त सुब्रत रॉय अपने राजसी ठाठ के लिए मशहूर थे. फिल्मी सितारे हों या क्रिकेट के स्टार. राजनीति के बड़े चहेरे हों या विदेशी मेहमान सुब्रत रॉय के नवाबी ठाठ के कायल हो जाया करते थे. जब देश में यूपीए- 1 से पहले प्रधानमंत्री के रूप में कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी के नाम का प्रस्ताव आया उसके बाद विपक्षी सियासत ने उन्हें विदेशी मूल बताते हुए विरोध जताना शुरू कर दिया. सुब्रत रॉय ने भी उस वक्त भूल कर दी, और सोनिया गांधी को विदेशी मूल बता उन्होंने भी विरोध कर दिया. हालांकि सुब्रत रॉय को छोड़ देश के किसी भी बड़े कारोबारी समूह या उनके मुखिया ने मुखर होकर सोनिया गांधी के नाम का विरोध नहीं किया था. वैसे विपक्ष के हमलावर तेवर को देखते हुए यूपीए ने अपना फैसला भले बदल लिया मगर सत्ता की चाबी सोनिया गांधी के ही हाथों में रही. माना जा रहा है, कि सहारा समूह के दुर्दिन की कहानी यूपीए- 1 में ही रची गई और यूपीए- 2 आते- आते समूह तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम के शिकंजे में फंस गई. सेबी ने सहरा की दो कंपनियों के निवेशकों को फर्जी बताते हुए उसके क्रियाकलापों पर रोक लगाने की अर्जी इलाहाबाद हाईकोर्ट में डाल दी. इलाहाबाद हाईकोर्ट में फैसला सहारा के पक्ष में हुआ, सेबी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. तीन बार नोटिस जारी होने के बाद भी सहारा प्रमुख जब हाजिर नहीं हुए तो शीर्ष कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया. अंततः सहारा प्रमुख सुप्रीम कोर्ट में हाजिर हुए और वहां जो हुआ उससे न केवल देश बल्कि विदेशों में भी भूचाल आ गया. सहारा प्रमुख को सेबी के दावे के तहत 25 हजार करोड़ रुपए जमा कराने तक तीन सहयोगियों संग तिहाड़ जेल भेज दिया गया. वहीं से सहारा समूह के दुर्दिन की शुरुआत हुई, जो आज 9 साल बाद भी जारी है. हालांकि इसका बदला समूह के 12 लाख कार्यकर्ताओं और उनसे जुड़े परिवार के मतदाता सदस्यों ने लिया और 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता से जो बेदखल हुई, आजतक वापसी करने में नाकाम रही है.
एनडीए सरकार में भी नहीं मिली राहत
यूपीए- 2 को सत्ता से बेदखल करने में सहारा के कार्यकर्ताओं की भूमिका के बाद ऐसा लग रहा था कि एनडीए की सरकार आने के बाद सहारा समूह के अच्छे दिन आएंगे मगर ऐसा नहीं हुआ. कानूनी दांव पेंच में समूह फंसता चला गया और उसके एजेंट और निवेशकों की मुश्किलें बढ़ती गयी. 2019 में पुनः एनडीए प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई मगर सहारा- सेबी विवाद अभी भी जारी है. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार सहारा जबतक सेबी के दावे के तहत रकम सहारा- सेबी खाते में जमा नहीं करा देती है एम्बारगो (प्रतिबंध) जारी रहेगा. इस बीच न तो सेबी द्वारा निवेशकों के पैसे लौटाए गए, न सहारा ही पैसों का भुगतान अपने निवेशकों को कर पा रही. जबकि सहारा चीख- चीखकर दावा कर रही है कि उसने सहारा- सेबी खाते में 24 हजार करोड़ रुपए जमा करा दिए हैं.
मामला देश भर में फैले सहारा के कार्यालयों से होते हुए सदन तक पहुंच चुकी है मगर देश के भाग्य विधाताओं का ध्यान देश के सबसे बड़े बेरोजगारी की त्रासदी की ओर आखिर क्यों नहीं जा रही है ये गौर करने वाली बात है.
सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी भी सवालों के घेरे में
वैसे सहारा- सेबी विवाद केवल राजनीति तक ही सिमट कर नहीं रह गई है. चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है, और एक दो नहीं पूरे 9 साल बीत चुके हैं. देशभर के सहारा के निवेशक और एजेंट त्राहिमाम कर रहे हैं. अपने जीवन भर की गाढ़ी कमाई मिलने की आस लगाए करोड़ों निवेशक और लाखों एजेंट अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. आत्महत्या तक करने को विवश हैं. देशभर में सहारा और सेबी के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं, फिर सुप्रीम कोर्ट के मामले में चुप्पी कई सवालों को जन्म देने के लिए काफी हैं.
लोग दबी जुबान से यह भी कहते सुने जा रहे हैं कि शीर्ष अदालत सत्ता के हाथों की कठपुतली बन चुकी है. हाल के दिनों में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों पर गौर करने से यह आरोप सिद्ध भी होते हैं.
यूपी चुनाव में एजेंटों ने फैसला नहीं तो वोट नहीं करने का लिया निर्णय
लगातार आर्थिक मार झेल रहे समूह के कार्यकर्ता इस बार यूपी चुनाव का बहिष्कार करने का मन बना रहे हैं. शोषल मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सहारा के एजेंटों ने न्याय नहीं तो वोट नहीं का फैसला लिया है और यूपी में जगह- जगह प्रदर्शन के दौरान इससे संबंधित बैनर पोस्टर भी लगा रहे हैं. अब उनका विरोध कितना निर्णायक साबित होता है ये तो 10 मार्च को ही पता चलेगा मगर सहारा प्रमुख के सपा से नजदीकियां किसी से छिपी नहीं है.
किसान आंदोलन के तर्ज पर हो सकता है बड़ा आंदोलन
सहारा- सेबी विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी से देशभर के करोड़ों निवेशकों को अपनी गाढ़ी कमाई डूबने का खतरा मंडराने लगा है. वहीं सहारा के लाखों एजेंटों के समक्ष बेरोजगारी और भुखमरी की स्थित आन पड़ी है. ऐसे में वो दिन दूर नहीं कि देश मे किसान आंदोलन के तर्ज पर एक और आंदोलन शुरू हो जाए.
ब्यूरो रिपोर्ट indianewsviral.co.in
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5 Comments
इस सब में देश का कानून देश का सिस्टम बहुत ही गलत है मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री मान्यवर मोदी जी ही नहीं चाह रहे हैं सहारा इंडिया परिवार देश में कार्य करें सहारा इंडिया परिवार ने देश में उन्नति के साथ-साथ बेरोजगारों को रोजगार दिया है यह बात सरकार को हजम नहीं हो रही है ठीक है सरकार तो वर्तमान में कोई रोजगार दे ही नहीं रही है इस कारण सहारा इंडिया को परेशान किया जा रहा है जय हिंद जय भारत
आपकी बात बेहद सही है सहारा इंडिया परिवार का एजेंट आज कल घुट घुट के जी रहा है जबकि एजेंट ने बड़ी मेहनत करके काम किया और आज25 30 साल काम करने के बाद घुट घुट कर जीना पड़ रहा है
You are saying right after a long period.But kindly collect the views of Sebi & supreme court justice regarding this case .Sahara management filed 8 petition for hearing of the case.Why the apex court not giving any date ?? When all Sahara people will die,then the SEBI & supreme court will hear the case
If honable supreme Court not decision of sahara sebi case.itwil be biggest calamity of 21st century
बारोजगारो के खिलाप है वर्तमान सरकार उसका जीता जागता सबूत है सहारा समूह क्यों अपनी नीति को अस्पष्ट नही कर रही है सरकार आखिर किस बात का बदला ले रही है सुप्रीम कोर्ट तो छोटी सी छोटी बात को भी संज्ञान में लेती है फिर सहारा समूह पर सुनवाई में क्यों देरी कर रही है सेम सेम