DESK एक तुगलकी निर्णय से एक लाख करोड़ के सल्तनत वाले साहरा समूह को तहस- नहस करने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जज अरिजीत पसायत, जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस एचके सेमा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ईश्वर लाल अग्रवाल ने राष्ट्रपति के यहां केस दर्ज किया है जिसका केस नंबर PRSE/ए 2023/0014606 है.
इसके तहत एसोसिएशन की ओर से धारा 220, 219, 409, 166, 120ब, 34 आईपीसी आदि के तहत मामला दर्ज करने का आग्रह किया गया है. इसमें सहारा प्रमुख सुब्रत राय और जाहिरा शेख को मुआवजा दिलाने की बात कही गई है.
दरअसल सेबी की दलील पर सहारा इंडिया रियल एस्टेट कारपोरेशन एवं सहारा इंडिया हाउसिंग इन्वेस्टमेंट मामले एवं जाहिरा शेख की सुनवाई कर रहे जजों ने कोर्ट अवमानना मामले में जाहिरा शेख को 1 साल और सहारा प्रमुख सुब्रत राय सहारा को अनंत समय की सजा सुनाकर 2 वर्ष 2 महीने तक जेल में रखा. आज भी सुब्रत राय सहारा बेल पर चल रहे हैं. उनकी सजा खत्म नहीं हुई है.
आरोपी जज भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 (1), 21 एवं युनो के ICCPR के 15 (1) सीआरपीसी की धारा 436 A (II) के उल्लंघन के आरोपी है जिसमें यह स्पष्ट प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में अधिकतम सजा से ज्यादा जेल में नहीं रख सकते, जबकि कोर्ट अवमानना केस में अधिकतम 6 महीने की सजा का प्रावधान है, फिर भी इन आरोपी जजों ने जाहिरा शेख को 1 साल और सुब्रत राय सहारा को 2.2 साल तक जेल में रखा.
उपरोक्त संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए दोषी जज पर आईपीसी 220, 166, 219, 500, 501, 409, 120 (बी) 34 आईपीसी आदि धाराओं के तहत कानूनी कार्रवाई कर उन जजों को 7 साल से लेकर उम्र कैद की सजा हो सकती है. पीड़ित सुब्रत राय और जाहिरा शेख को सरकार और आरोपी जज मुआवजा देने को बाध्य हैं. इस मामले की वजह से सहारा समूह से जुड़े करीब 12 लाख कार्यकर्ता और 13 करोड़ निवेशक प्रभावित हुए हैं. कईयों की मौत हो चुकी है. उन सभी को अब न्याय मिलने की उम्मीद नजर आ रही है.
बता दें कि इससे पहले भी जस्टिस खेहर पर सुप्रीम कोर्ट में उनके पास लंबित मामले में आदेश देने के लिए उनके बेटे के माध्यम से 77 करोड़ मांगने के आरोप सिक्किम के मुख्यमंत्री कलीखो फुल ने अपने सुसाइड नोट में किया था. अभी तक उक्त मामले की जांच नहीं हुई है. कानूनी प्रावधानों के तहत खासकर इंटरनेशनल कान्वेंट ऑफ़ सिविल एंड पॉलीटिकल राइट्स (आईसीसीपीआर) के अनुच्छेद 14 (5) के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा सजा पाने वाले हर व्यक्ति को अपील करने के लिए एक वरिष्ठ बेंच या ऊपरी कोर्ट का निर्माण करने की जिम्मेदारी सरकार की है, लेकिन कई पीड़ितों को ऐसी कोई व्यवस्था नहीं प्रदान की गई है और उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है. ऐसे सभी पीड़ितों को सरकार द्वारा मुआवजा देने के आदेश यूएनओ में दिए गए हैं. भारतीय कानूनी प्रावधानों के अनुसार पीड़ितों को मुआवजा देने के सरकार वह राशि आरोपी जज से वसूल करती है.
Reporter for Industrial Area Adityapur