DESK 22 साल के झारखंडियों का दुर्भाग्य कहें या यहां के सत्तालोलुप राजनेताओं की कूटनीति, जिसके प्रभाव में आकर समय- समय पर झारखंड जलता रहा है जिससे झारखंड का विकास न केवल अवरुद्ध हुआ है, बल्कि देश के दूसरे राज्यों की तुलना में झारखंड हर दृष्टिकोण से पिछड़ रहा है.
सवाल यह उठता है कि इसके लिए जिम्मेदार किसे ठहराया जाए ? कभी झारखंड को डोमिसाइल की आग में जलाया गया… कभी बहरी- भीतरी के नाम पर… कभी खतियान के नाम पर, तो कभी नियोजन नीति के नाम पर झारखंड को जलाने का प्रयास किया गया. हर बार आंदोलन के केंद्र में झारखंड की सत्ता रही. जिसे सियासी लोगों ने खूब हवा दिया. नतीजा झारखंड आजतक अशांत है.
जिस सोच के साथ झारखंड अलग राज्य का गठन हुआ, आज कहीं ना कहीं झारखंड उससे कोसों दूर रह गया है. झारखंड की युवा पीढ़ी को इस पर मंथन करने की जरूरत है.
हाल के दिनों में जिस तरह खतियानी आंदोलन को सियासतदानों ने हवा देकर झारखंड को अशांत किया, उसमें एक नाम राजनीतिक रूप से निस्तेज पड़ चुके जमशेदपुर के पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो का भी आता है. यहां बताते चलें कि खतियान आंदोलन हो, स्थानीय नीति या कुड़मी को आदिवासी की श्रेणी में शामिल करने के मुद्दे को हवा देना हो, सभी में वैसे सियासी चेहरे सामने आए हैं, जो या तो अपने बंजर हो चुके राजनीतिक जमीन को फिर से हरा- भरा करना चाह रहे हैं. या झारखंड की सियासत में अपनी नई जमीन तलाश रहे हैं. खो चुके राजनीतिक जमीन को फिर से हरा-भरा करने में घाटशिला के पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा एवं जमशेदपुर के पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो शामिल है, जबकि झारखंड की राजनीति पर नई फसल तैयार करने वालों में टाइगर के नाम से विख्यात हो चुका युवा नेता जयराम महतो शामिल है. सूर्य सिंह बेसरा एवं शैलेंद्र महतो इन दिनों राजनीतिक हाशिए पर थे, मगर खतियान आंदोलन, स्थानीय नियोजन नीति और कुड़मी को आदिवासी की मान्यता दिए जाने संबंधी आंदोलनों में कूदकर अपनी वापसी करने की जुगत में लगे हैं.
शैलेंद्र- शिबू पर लग चुका है वोट के बदले नोट का आरोप
साल 1993 सीएम हेमंत सोरेन के पिता और जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन का नाम 1993 के सांसद घूस कांड में जोर- शोर से उछला था. शिबू सोरेन समेत जेएमएम के चार सांसदों पर आरोप लगा था कि उन्होंने तत्कालीन नरसिम्हाराव सरकार को बचाने के लिए मोटी घूस ली थी. उन पर आरोप था कि शिबू सोरेन और उनके तीन सांसद- शैलेंद्र माहतो, साइमन मरांडी और सूरज मंडल के घर सूटकेस भर- भर कर नोटों की गड्डियां पहुंची थीं. वो 1993 का वक्त था, जब केंद्र में कांग्रेस की अल्पमत वाली नरसिम्हाराव की सरकार चल रही थी. 28 जुलाई 1993 को बीजेपी नरसिम्हाराव के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई, सरकार का गिरना लगभग तय था, लेकिन जब संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो जेएमएम के सांसदों ने सरकार के पक्ष में और अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया और इस तरह कांग्रेस की सरकार बच गई. कांग्रेस की सरकार तो बच गई लेकिन नरसिम्हाराव सरकार पर सरकार बचाने ले लिए घूस देने के जो आरोप लगे उसके दाग कभी नहीं धुले. कांग्रेस पर आरोप लगा कि उसने सरकार को बचाने के लिए कुछ सांसदों को मोटी घूस दी है. यह घूसकांड भारत की राजनीति के इतिहास के पन्नों में अंकित हो चुका है.
वाजपेयी ने किया था घूसकांड को लेकर सनसनीखेज खुलासा
बात 1995 की है जब अटल बिहारी वाजपेयी ने इस घूसकांड का संसद के भीतर सनसनीखेज खुलासा किया था. वाजपेयी संसद के सभी सदस्यों के सामने जेएमएम के सांसद शैलेंद्र महतो को लेकर आए. शैलेंद्र महतो ने स्वीकार किया कि शिबू सोरेन समेत उनकी पार्टी के सांसदों ने कांग्रेस की सरकार को बचाने के लिए 50- 50 लाख रुपए की घूस ली थी. इस खुलासे के बाद इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराई गई. सीबीआई ने अपनी जांच में कुछ सनसनीखेज खुलासे किए.
चार्जशीट में सीबीआई ने किए थे चौंकाने वाले खुलासे
सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में खुलासा किया कि एक मारुति जिप्सी में सूटकेस भरकर रुपए लाए गए थे और कांग्रेस नेता सतीश शर्मा के फार्म हाउस पर हुई पार्टी में इन पैसों को जेएमएम सांसदों को बांटा गया. सीबीआई ने चार्जशीट में खुलासा किया कि कांग्रेस नेता बूटा सिंह ने 26 जुलाई 1993 को नरसिम्हाराव के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने के लिए जेएमएम के चार सांसदों से संपर्क किया था और इसके बाद उन चारों सांसदों को बूटा सिंह तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव से मिलवाने के लिए उनके सरकारी आवास 7 रेसकोर्स ले गए. बूटा सिंह ने खुद इस बात को स्वीकार किया था.
और इस तरह गिरते-गिरते रह गई नरसिम्हा राव की सरकार
जब संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो इस पक्ष में 251 जबकि विपक्ष में 265 वोट पड़े और इस तरह नरसिम्हा राव की सरकार बच गई. इस वोटिंग में जेएमएम के चार सांसदों के अलावा जनता दल और कुछ अन्य सांसदों ने सरकार के पक्ष में वोट किया.
सरकार बचने के बाद जेएमएम नेताओं पर बरसे थे नोट
सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में खुलासा किया, कि 29 जुलाई की सुबह 8 बजे चार अनजान लोग जेएमएम सांसद सूरज मंडल के घर पहुंचे थे. सूरज मंडल के नौकर दारा रावानी की मदद से उन्होंने कार से सूटकेसों को निकाला और उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया. इस कमरे की चाभी सूरज मंडल के पास थी. इसी तरह बारी- बारी से जेएमएम के चारों सांसदों के यहां नोटों से भरे सूटकेस पहुंचाए गए. इसके बाद शैलेंद्र माहतो और साइमन मरांडी अपने एक पुराने जान पहचान वाले शख्स आरके जेटली के घर पहुंचे और वहां जाकर नोटों को गिना गया. नोटों को गिनने के बाद चारों सूटकेसों को बंद कर दिया गया. इसके बाद करीब साढ़े तीन बजे वे लाग आरके जेटली के घर से बाहर निकल आए. उसी रात 9 बजे शिबू सोरेन, सूरज मंडल के घर पहुंचे और वहां से एक बैग और एक सूटकेस को अपने घर ले आए.
पीएनबी के खातों में डाली गई घूस की रकम
इस पूरी रकम को पीएनबी बैंक के खातों में डाला गया. अब मामला यह उठता है कि उन अकाउंट के बारे में कैसे पता चला, जिनमें घूस की रकम डाली गयी थी. सीबीआई ने बताया कि पीएनबी में एक खाता खुलने से घूस की रकम के बारे में जानकारी मिली. दरअसल सूरज मंडल के दोस्त थे सीए सुशील कुमार, जिन्होंने मंडल की मुलाकात दिल्ली के सरोजिनी नगर स्थित पंजाब नेशनल बैंक के एक मैनेजर से करवाई. मैनेजर से समझौते के बाद सरोजिनी नगर के पीएनबी बैंक के खाता संख्या 17108 में पैसे डाले गए.
जेएमएम ने की घूस के पैसे को पचाने की कोशिश
सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में कहा कि जेएमएम ने घूस के इस पैसे को पचाने के कई तरीके अपनाए. इस पैसे को पार्टी फंड का नाम दिया गया. जेएमएम के नेताओं ने इस रकम को इधर- उधर भी निवेश किया. उन्होंने इस पैसे को पीएनबी से निकालकर दूसरे अकाउंट में भी ट्रांसफर किया ताकि रकम बंट जाए. इसके अलावा एक फर्जी प्रस्ताव भी पास किया गया जिसमें पार्टी सांसदों को दो प्रतिशत के ब्याज पर कर्ज देने का प्रावधान किया गया था. जेएमएम के सांसदों ने 100 रुपए से लेकर 5 हजार रुपए तक के फर्जी कूपन भी छपवाए, ताकि वे कह सकें कि उन्हें पार्टी फंड के लिए पैसे मिले हैं.
कुड़मी के नाम पर शैलेंद्र की अवसरवादी राजनीति
जब से कुड़मी समुदाय द्वारा कुड़मी जाति को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग की जा रही हैं, तभी से पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो भी कूद पड़े हैं और अपनी बंजर हुई राजनीतिक जमीन पर फिर से एक बार फसल लगाने की जुगत में जुट गए हैं. इस बीच आदिवासी नेताओं द्वारा तर्क दिया जा रहा है कि पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो दो दशक पहले तक स्वयं को क्षत्रिय समाज का सदस्य बता रहे थे, क्षत्रिय जाति सवर्ण श्रेणी में आता है तो ऐसे में शैलेन्द्र महतो का कुड़मी को एसटी का दर्जा देने की मांग बिल्कुल गलत है.
जमशेदपुर शहर के कई पुराने नेता तथा कुड़मी समाज के बुजुर्गों का कहना है कि पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो अपने सुविधा अनुसार राजनीति करते हैं. जब उन्हें जमशेदपुर लोकसभा में शहरी वोटों की जरूरत थी तब उन्होंने शहरवासियों के बीच स्वयं को एक क्षत्रिय समाज का सदस्य बता कर स्थापित किया था, लेकिन जब शहर के मतदाताओं के बीच पकड़ फीकी पड़ने लगी तो फिर से अब कुड़मी को एसटी का दर्जा देने को लेकर चल रहे आंदोलन का झंडा पकड़ लिया है. सूत्रों की मानें तो शैलेन्द्र महतो फिलहाल जमशेदपुर लोकसभा सीट को अपने पाले में लाने के लिए भी रणनीति बना रहे हैं. हालांकि, ऐसा प्रयास वे राज्यसभा के लिए भी कर चुके हैं, लेकिन उसमें सफलता हाथ नहीं लगी. “हाउड़ी मोदी” नाम से एक किताब लिखकर स्वयं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा समर्थक साबित करने का प्रयास किया था, जिसके एवज में शैलेन्द्र महतो झारखंड से राज्यसभा जाने का ख्वाब देख रहे थे. जब राज्यसभा जाने का ख्वाब टूटा तो शैलेन्द्र महतो का मोदी और भाजपा से मोह भंग हो गया. अब शैलेन्द्र महतो यूपीए खेमे में चले गए हैं और जमशेदपुर लोकसभा से यूपीए की टिकट की आस में है. हाल ही में रामगढ़ उपचुनाव में शैलेन्द्र महतो ने गठबंधन समर्थित कांग्रेस प्रत्यशी बजरंग महतो के चुनाव प्रचार में व्यस्त थे. दूसरी ओर आजसू को खूब कोस रहे थे. ऐसे में शैलेन्द्र महतो से सवाल है कि क्या रामगढ़ से आजसू प्रत्याशी वर्तमान विधायक सुनीता चौधरी कुड़मी समाज की सदस्य नहीं है ? बिल्कुल है, सुनीता चौधरी भी कुड़मी समुदाय की सदस्य हैं लेकिन शैलेन्द्र महतो अपने एक विशेष मकसद से कुड़मी समुदाय को गोलबंद करके जमशेदपुर लोकसभा की टिकट हासिल करना चाहते हैं. इधर शैलेन्द्र की योजना कुड़मी समाज के 21 मार्च को रघुनाथ महतो जयंती के तहत जमशेदपुर के रीगल मैदान में भारी संख्या में भीड़ जुटाकर अपना शक्ति प्रदर्शन करने की योजना है, ताकि उस भीड़ को देख यूपीए गठबंधन उनके आगे नतमस्तक हो जाए और आगामी लोकसभा का टिकट फाइनल कर दे. जबकि, शैलेन्द्र महतो स्वयं कहते हैं कि सरायकेला- खरसावां जिले के नीमडीह प्रखंड का घुटियाडीह गांव रघुनाथ महतो का जन्मस्थली है. पर, आश्चर्य की बात है कि शैलेन्द्र महतो घुटियाडीह गांव में श्रद्धांजलि देने नहीं जाएंगे, वह बिष्टुपुर में आयोजित जनसभा का नेतृत्व कर रहे हैं.
कुड़मी को क्षत्रिय बता चुके शैलेन्द्र का यू टर्न क्यों ?
साल 2002 में ओडिसा के रायरंगपुर में कुड़मी क्षत्रिय संस्कृति भवन का उद्घाटन किया गया था. जहां जमशेदपुर की पूर्व सांसद आभा महतो (शैलेन्द्र महतो की धर्मपत्नी) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (तत्कालीन परिवहन मंत्री, ओडिशा सरकार) तथा पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो द्वारा उक्त कुड़मी क्षत्रिय संस्कृति भवन का उद्घाटन किया था. कहीं न कहीं यह भवन और शिलापट्ट आदिवासियों द्वारा दिए जा रहे तर्क को प्रमाणित कर रही हैं कि दो दशक पहले तक वास्तव में पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो ने स्वयं को क्षत्रिय समाज का सदस्य स्थापित करने का प्रयास किया था और शायद इसलिए उन्हें तथा उनकी पत्नी को जमशेदपुर लोकसभा में शहरी मतदाताओं का समर्थन मिलता था. दूसरी ओर महतो जाति के नाते ग्रामीण क्षेत्र के कुड़मी भी बढ़चढ़ कर उनका समर्थन करते थे. लेकिन, राजनीतिक हासिए पर आने के बाद अब फिर से कुडमियों के कंधे पर सवार होकर शैलेन्द्र महतो जमशेदपुर लोकसभा का सपना देख रहे हैं.
Reporter for Industrial Area Adityapur