आदित्यपुर/ Kunal Kumar 90 के दशक में आदित्यपुर मतलब आंदोलन हुआ करता था. यहां सरकारी बाबुओं की नौकरी पर हमेशा तलवार लटकी रहती थी. कब किधर से आंदोलन का बिगुल बज जाए और सड़क जाम हो जाए कहना मुश्किल था.
तब संसाधनों के लिए आंदोलन हुआ करता था. अब संसाधनों से परिपूर्ण होते हुए भी क्षेत्र की जनता सड़क, पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए त्राहिमाम कर रही है, मगर यहां से आंदोलन समाप्त हो चुका है. इसका कारण जमीन से जुड़े जनप्रतिनिधियों के समझौतावादी परिपाटी और जनमानस से भरोसा टूटना माना जा रहा है. तब गिने चुने नेता लक्ष्य निर्धारित कर आंदोलन की रूपरेखा तय करते थे और जनसमूह इसे अपना लक्ष्य समझकर आंदोनल को धार देते थे.
धीरे-धीरे समय बदलता गया आंदोलन दर आंदोलन सुविधाएं बढ़ती गई अधिसूचित क्षेत्र से आदित्यपुर नगर निगम बन गया. आंदोलन से उपजे नेता माननीय बन गए आंदोलन को धार देने वाले ठेकेदार बन गए. अब ना तो आंदोलनजीवी नेता रहे ना आंदोलन को धार देने वाले. नतीजा नगर निगम बनने के बाद भी आदित्यपुर की जनता पानी, बिजली, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए त्राहिमाम कर रही है. पूरे आदित्यपुर नगर निगम में एक वार्ड को छोड़ 34 वार्डों में समस्याओं का अंबार लगा हुआ है. मगर किसी में हिम्मत नहीं है कि नगर निगम, विधायक या सांसद के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंक सके.
हां राजनीति चमकाने के नाम पर फोटो सेशन जरूर होता है. कुछ नेता ऐसे भी हैं जिनकी तस्वीर अखबारों में मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से ज्यादा छप रहे हैं मगर निराकरण के नाम पर खानापूर्ति हो रही है. यूं कहें तो आंदोलन अब अखबारों की सुर्खियां बन कर रह गई है. चुनावों में मनी पावर हावी हो चुका है. जमीन से जुड़े जनप्रतिनिधियों को लोग नजरअंदाज कर रहे हैं. सरकारी तंत्र जनता पर हावी हो चुकी है. इतने बड़े निगम क्षेत्र में एक भी डिग्री कॉलेज नहीं खुल सका. विकास का पहिया कच्छप गति से चल रहा है. आखिर कब यह पहिया अपने मुकाम को हासिल करेगा यह देखने वाली बात होगी.
Reporter for Industrial Area Adityapur