DESK झारखंड मुक्ति मोर्चा इन दिनों अंतर्कलह के दौर से गुजर रही है. जिस झामुमो ने 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में धूल चटाई आज वही झामुमो टूट के कगार पर पहुंच चुकी है. हेमंत सोरेन के जेल जाते ही पार्टी के विधायक अपनी डफली- अपनी राग अलापने लगे हैं. इतना ही नहीं दिशोम गुरु शिबू सोरेन की बड़ी बहू यानी हेमंत सोरेन की भाभी ने तो पार्टी छोड़ उसी बीजेपी का दामन थाम लिया जो झामुमो का सबसे बड़ा राजनीति दुश्मन है. सीता अब दुमका संसदीय सीट से एनडीए की उम्मीदवार हैं. और भर- भर पेट झामुमो पर लांछन लगा रही हैं.
इतना ही नहीं पार्टी के दूसरे कद्दावर विधायक चमरा लिंडा ने भी इस्तीफा दे दिया है. बोरियो विधायक लोबिन हेम्ब्रम अलग बगावती तेवर अख्तियार किए हुए हैं. और तो और हेमंत सोरेन के राज में सियासी रसगुल्ले खाने वाले उनके खासमखास अभिषेक प्रसाद पिंटू ने भी सरकारी गवाह बनना कबूल कर लिया है. हेमंत सोरेन के भाई और चम्पाई सरकार के मंत्री बसंत सोरेन भी ईडी की रडार पर हैं. बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि लोकसभा चुनाव के बाद बसंत सोरेन भी बीजेपी में शामिल होने वाले हैं. अब बूढ़े शिबू सोरेन के कंधों में वो ताकत बची नहीं कि वे पार्टी को एकजुट कर सकें. ऐसे में सारा दारोमदार सीएम चंपाई सोरेन के कंधे पर आन पड़ी है.
वैसे तो चंपाई सोरेन ने कई मौकों पर पार्टी को संकट से उबारा है, मगर इस बार समस्या जटिल है. पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने कमान संभाल लिया है. कयास लगाए जा रहे हैं कि गांडेय उपचुनाव का परिणाम आने के बाद कल्पना सीएम पद के लिए देवेदारी करेगी फिर चंपाई को गद्दी सौंपनी पड़ सकती है. वैसे भी वे खुद की सरकार को हेमंत सोरेन पार्ट- 2 बताते हैं. यहां तक कि वे मुख्यमंत्री आवास का प्रयोग केवल खानापूर्ति के लिए करते हैं. अंदरखाने की मानें तो सारे फैसले पार्टी महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य, कल्पना सोरेन और होटवार जेल में बंद हेमंत सोरेन लेते हैं. वैसे मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन की निष्ठा पर शिबू सोरेन हों या हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन किसी को कोई संदेह नहीं है. मगर सियासी बिसात पर मात खा चुका सोरेन परिवार अब अंदर से टूट चुका है. यही वजह है कि सोरेन परिवार की मंझली बहू यानी कल्पना सोरेन अब नए सिरे से बिसात बिछाने और मोहरों को चलने का काम कर रही है. फिर चाहे पार्टी के फैसले हों, कानूनी दांव- पेंच में फंसे अपने पति को बाहर निकालना या खुद को एक कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में प्रस्तुत करने का कोई मौका गंवाना नहीं चाहती हैं. वे दिनरात पार्टी को नए सिरे से गढ़ने में जुटी है.
इन सबके बीच यक्ष प्रश्न फिर वही सामने आ रहा है कि मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन कबतक इस जिम्मेदारी को निभाएंगे और 4 जून को लोकसभा और गांडेय उपचुनाव के परिणाम आने के बाद उनकी भूमिका क्या होगी. क्या वे भरत की तरह गद्दी लौटा देंगे या कहानी में ट्वीस्ट आएगा यह देखना दिलचस्प होगा. वैसे चंपाई सोरेन का व्यक्तित्व हमेशा से पार्टी और दिशोम गुरु शिबू सोरेन के नाम पर समर्पित रहा है. यहां तक कि उन्होंने अपने अलावा अपने परिवार के किसी भी सदस्य के लिए पार्टी का टिकट नहीं मांगा, जबकि वे जब चाहते अपने बेटों के लिए टिकट ले सकते थे. उनका बड़ा बेटा बाबूलाल सोरेन काफी सक्रिय हैं और टिकट के प्रबल दावेदार भी बावजूद इसके चंपाई सोरेन ने कभी कोई पैरवी नहीं की. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चंपाई सोरेन सिंहभूम संसदीय सीट से “इंडिया” गठबंधन के उम्मीदवार बनते हैं तो उनकी राजनीतिक पारी लंबी खिंच सकती है. अब देखना यह दिलचस्प होगा कि क्या झामुमो खेमा सीएम चंपाई को सिंहभूम सीट से प्रत्याशी बनाएगा या किसी अन्य पर दांव लगाएगा. हालांकि यहां सीएम की प्रतिष्ठा दांव पर है.
Reporter for Industrial Area Adityapur