DESK अपने जीवन काल के अंतिम सियासी पारी खेल रहे चंपाई सोरेन आज सूबे के बदले सियासी घटनाक्रम की वजह से सत्ता के शीर्ष पर पहुंच गए हैं, मगर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचते की उनके अंदर अहंकार घर करने लगा है. जिस चंपाई सोरेन की खासियत रही है कि वे एकबार जिससे मिल लिए उन्हें नाम और काम से जान लेते हैं. आज उनके आंखों पर रंगीन चश्मा और कानों में सियासी चाटुकारों के संगीत बजने लगे हैं. यूं कहें कि मुख्यमंत्री का रिमोट कंट्रोल कहीं और है. क्योंकि चंपाई सोरेन की शख्सियत ऐसी नहीं है कि वे अपनों को खासकर अपने विधानसभा के लोगों को किसी भी मंच से नजरअंदाज कर दें. हो सकता है कि बदले प्रोटोकॉल के बीच कुछ मजबूरियां पैदा हो जाते हैं मगर यह मुख्यमंत्री के लिए हो सकता है चंपाई सोरेन के लिए नहीं.
यहां ऐसा लिखने की नौबत इसलिए आयी क्योंकि मामला पत्रकारों से जुड़ा है. पत्रकार भी कहीं और के नहीं बल्कि उनके गृह क्षेत्र यानि सरायकेला के हैं. उस क्षेत्र के पत्रकारों से जुड़ा मामला है जिन्होंने आजतक शायद ही किसी कॉलम में विधायक, मंत्री या मुख्यमंत्री बनने के बाद चंपाई सोरेन के खिलाफ नकारात्मकता परोसे हों. सभी चंपाई सोरेन से इतने घुले- मिले रहे हैं कि चंपाई के एक बुलावे पर सारे जरुरी कामों को छोड़कर घंटों उनके पीछे- पीछे तबतक घूमते समाचार संकलन करते रहते हैं, जबतक चंपाई सोरेन थक नहीं जाते. फिर साथ बैठकर सियासी गप- शप और क्षेत्र के विकास पर चर्चा करते हुए चाय पीकर चले जाते. जाते- जाते चंपाई सोरेन पत्रकारों के सुख- दुःख की सुध लेना नहीं भूलते. चंपाई सोरेन की यही अदा उन्हें हर नेताओं से अलग करता है. उसके बाद क्षेत्र के पत्रकारों में इस बात की होड़ मच जाती है कि वे किस तरह से चंपाई के तारीफ में क़सीदे गढ़ें और उसे प्रकाशित करें. ताकि चंपाई सोरेन पढ़ने के बाद तारीफ करें. वे करते भी हैं इसमें कोई शक नहीं है. चंपाई सोरेन की यही खासियत रही है. इस दौरान उनके चेला- चटिया दूर- दूर तक सामने नहीं नजर आते थे. मगर अब बदले सियासी घटनाक्रम में चेला- चटिया हावी होने लगे हैं. जिस चंपाई सोरेन से मिलने के लिए कभी किसी पत्रकार को किसी अपॉइंटमेंट लेने की जरूरत नहीं पड़ी आज उनका अपॉइंटमेंट लेने के लिए चेला- चटिया के पास पैरवी करने की नौबत आन पड़ी है. चेला- चटिया खुद को खुदा मानने लगे हैं. हैरत की बात तो यह है कि मुख्यमंत्री भी अपने गृह क्षेत्र के पत्रकारों को देखकर मुंह फेर ले रहे हैं.
इसकी एक बानगी बुधवार को राजधानी रांची में देखने को मिली जहां मुख्यमंत्री से मिलने उनके गृह जिला सरायकेला- खरसावां के दर्जन भर पत्रकार पहुंचे थे. हालांकि इसके लिए पत्रकारों ने उनके खास से समय लिया था. खास ने ही उन्हें अमुक समय पर रांची बुलाया था. जिले के कोने- कोने से पत्रकार उत्साहित होकर अहले सुबह ही भूखे- प्यासे फूलों का गुलदस्ता, शॉल और ना जाने क्या- क्या उपहार लेकर पहुंचे थे. मगर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पत्रकारों को घंटों मुख्यमंत्री आवास के बाहर इंतजार कराया गया उसके बाद पैरवी- पैगाम लगाकर किसी तरह पत्रकारों ने अंदर प्रवेश किया. जहां उन्हें कड़े सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ा. खैर ये सब प्रोटोकाल का हिस्सा है. इससे कोई दिक्क़त नहीं मगर उसके बाद जो हुआ उसने सरायकेला के पत्रकारों के समक्ष यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया है. वे सोचने को विवश हो गए हैं कि वे किस श्रेणी के पत्रकारों में खुद को खड़ा पाते है. कड़ी जांच की प्रक्रिया से गुजरने के बाद पत्रकारों को फरियादियों के कतार में खड़ा कर दिया गया. करीब दस मिनट बाद माननीय मुख्यमंत्री बाहर निकले और यह कहते हुए निकल गए कि राष्ट्रपति का आगमन होने वाला है एयरपोर्ट जाना जरूरी है. उन्होंने अपने गृह क्षेत्र से आए पत्रकारों की ओर आंख उठाकर देखा तक नहीं, जबकि उनके खास और सरकारी सुरक्षा में तैनात सुरक्षा प्रमुख ने उन्हें बताया भी कि सरायकेला से पत्रकार उनसे मिलने पहुंचे हैं मगर उन्होंने राष्ट्रपति के प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए उन्हें झिड़क दिया. फिर चमचमाती मर्सिडीज़ गाड़ी में मुख्यमंत्री बैठे और एयरपोर्ट के लिए निकल पड़े. जबकि महज चंद सैकेंड के लिए वे रुककर यदि पत्रकारों से मुख़ातिब होकर यदि इतना बोल देते कि आपलोग वेट करें राष्ट्रपति के कार्यक्रम के बाद या विधानसभा की कार्रवाही के दौरान आपसे मिलते हैं तो पत्रकारों को सुकून मिल जाता, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया उन्होंने सीधे मुंह पत्रकारों की ओर देखा तक नहीं. सारे पत्रकार टुकुर-टुकुर देखते रह गए. सभी इस सोच में पड़ गए कि हमारे चंपई दादा इतने व्यस्त हो गए ! इससे बढ़िया तो वह हमारे विधायक या मंत्री ही थे जो कम से कम भरी भीड़ में भी हमें पहचान लेते थे. खुद को ठगा महसूस कर सभी पत्रकार मायूस होकर मुख्यमंत्री आवास से बाहर निकल गए. रांची की सड़कों में भटकते- भटकते चाय- नाश्ता किया उसके बाद विधानसभा पहुंचे, ताकि वहां भी मुख्यमंत्री से मुलाकात हो जाए, मगर वहां भी उन्हें निराशा हाथ लगी. वहां गेट पर ही उन्हें यह कहकर रोक दिया गया कि बगैर वैद्द पास के आपको अंदर प्रवेश करने नहीं दिया जाएगा. यहां से भी निराश सभी पत्रकार भूखे- प्यासे वापस सरायकेला लौट गए. हालांकि मुख्यमंत्री दोपहर बाद विधानसभा पहुंचे और देर शाम तक विधानसभा की कार्रवाही में हिस्सा लिया.
हां इस दौरान रांची के कुछ पत्रकारों ने मुख्यमंत्री के ख़ास से जानना चाहा कि आपने सरायकेला के पत्रकारों को बुला कर मुख्यमंत्री से क्यों नहीं मिलाया ? इसपर ख़ास ने जो जवाब दिया वह और भी गैर जिम्मेदारना रहा. उसने कहा कि जिस वक्त उन्हें बुलाया गया वे उससे विलम्ब से पहुंचे. जबकि सारे पत्रकार सुबह 8:00 बाजे ही मुख्यमंत्री आवास पहुंच चुके थे. उन्हें 10:00 बजे से पहले मिलने बुलाया गया था. जिस ख़ास ने समय दिया था उसे यह याद नहीं था कि बुधवार को राष्ट्रपति का कार्यक्रम है. फिर भी यदि वह चाहता तो विधानसभा में बुलवाकर मुख्यमंत्री से पत्रकारों को मिलवा सकता था, जिससे उन्हें तसल्ली होती. ऐसी बात नहीं है कि मुख्यमंत्री को इसकी जानकारी नहीं थी. मुख्यमंत्री आवास में जब अपने गृह क्षेत्र के पत्रकारों को देखकर उन्होंने मुंह फेर लिया तभी सारे भावनात्मक लगाव वहीं समाप्त हो गए. जो यह बताने के लिए काफी है कि चंपाई बाबू अब मुख्यमंत्री हो गए हैं. क्षेत्र के पत्रकारों को यह समझना होगा. अब आप उनसे प्रोटोकॉल के तहत मिलें ज्यादा अच्छा रहेगा. मान- सम्मान और मर्यादा बानी रहेगी. समय का इंतजार करें सत्ता सुख सभी को हजम नहीं होता है. ये झारखण्ड है. इसके अनेकों उदाहरण भरे पड़े हैं. मुख्यमंत्री के खास भी अतीत से सबक लें और सत्ता से सटे चाटुकारों का क्या हश्र हो रहा है उसपर मंथन करें.
Reporter for Industrial Area Adityapur