सोनुआ/ Jayant Pramanik मंगलवार को राज्य के विभिन्न जिलों से खासकर 5वीं अनुसूची जिलों से सैंकड़ों मनरेगा मजदूर, पारंपरिक ग्राम प्रधान, पंचायत जनप्रतिनिधि व मज़दूर संगठन से जुड़े लोग राजभवन (रांची) के समक्ष झारखंड नरेगा वॉच द्वारा आयोजित एक दिवसीय धरना में सोनुआ प्रखंड से 20 मज़दूर सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए थे.
नरेगा वॉच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि 2006 से ही झारखंड के लगभग एक करोड़ मनरेगा मज़दूरों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मनरेगा एक महत्त्वपूर्ण जीवनरेखा रही है. लेकिन पिछले कुछ सालों से खास कर 2023 में देश के मजदूरों सहित ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर मोदी ने सीधा हमला कर दिया है.
नरेगा वॉच के लातेहार के मनोज भुइयां ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2023 – 24 के लिए केन्द्रीय बजट में सिर्फ 60 हजार करोड़ रुपये आवंटित कर मनरेगा मजदूरों, दलितों, आदिवासियों तथा ग्रामीण अर्थब्यवस्था पर चोट किया है.यह पिछले साल की तुलना में 33% कम है. जीडीपी के अनुपात में यह आवंटन कार्यक्रम के इतिहास में सबसे कम है. इस साल ऑनलाइन मोबाइल हाजरी प्रणाली (एनएमएमएस) और आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस ) को अनिवार्य कर मनरेगा मजदूरों को बंधुआ मजदूरी करने के लिए धकेल दिया गया है. इन दोनों तकनीकों के कारण बड़े पैमाने पर मज़दूर काम व अपने मज़दूरी से वंचित हो रहे हैं.
अरकोसा पंचायत, लोहरदगा से आई मनरेगा मेट शीला कुमारी ने बताया कि एनएमएमएस के कारण मज़दूरों की परेशानियां और बढ़ गयी है. अब काम ख़तम होने के बाद भी फोटो के लिए मज़दूरों को सुबह और दोपहर कार्यस्थल पर रहना पड़ता है. एनएमएमएस में विभिन्न तकनीकि समस्याओं व इन्टरनेट नेटवर्क की अनुपलब्धता के कारण कई बार न हाजरी चढ़ पाती है और न फोटो. इसके कारण मज़दूरों द्वारा किए गए मेहनत का काम पानी हो जाता है और वे अपनी मज़दूरी से वंचित हो जाते हैं. कांके से आई मज़दूर शीला देवी ने स्पष्ट कहा कि पहले हाजरी कागज़ में बनता था जो सब मज़दूरों को दिखता था. अब तो मोबाइल में क्या होता है, समझ में नहीं आता है.
पश्चिमी सिंहभूम के संदीप प्रधान ने मज़दूरों की समस्याओं को साझा करते हुए कहा कि एक ओर मोदी सरकार आधार से हो रहे फाएदा का फ़र्ज़ी प्रचार में व्यस्त है और दूसरी ओर एबीपीएस के कारण मज़दूर अपने काम व मज़दूरी से वंचित हो रहे हैं. अगर मस्टर रोल में कुल मज़दूरों में केवल एक भी एबीपीएस लिंक्ड नहीं है, तो सभी मज़दूरों का भुगतान रोक दिया जा रहा है. राज्य के लगभग 1 करोड़ मज़दूरों में केवल आधे ही एबीपीएस लिंक्ड हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व आयुक्त के सलाहकर बलराम ने कहा कि आज राज्यपाल के समक्ष धरना देकर मांग किया जा रहा है कि राज्यपाल परिस्थिति में हस्तक्षेप करे, खास कर पांचवी अनुसूची क्षेत्र के लिए वे मुख्यतः ज़िम्मेवार है. चाहे एनएमएमस हो या एबीपीएस हो, ये कानून के विपरीत राज्य आदिवासी सलाहकार परिषद में बिना चर्चा व अनुमोदन के लिए लागू कर दिया गया है. यह ग्राम सभा, पांचवी अनुसूचि और लोकतंत्र का अपमान है.
रांची के कांके सहायता केंद्र की अर्पणा बारा ने सवाल किया कि अगर सरकारी पदाधिकारियों के लिए सातवी वेतन आयोग सिफारिश लागू कर लाखों रु तनख्वा मिल रही है, तो मोदी सरकार मज़दूरों को तुच्छ मज़दूरी क्यों दे रही है. मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों ने मनरेगा को आईसीयू में डाल दिया है और मज़दूरों को सड़क पर ला दिया है. वक्ताओं ने कहा कि झारखंड समेत पूरे देश के मनरेगा मज़दूर 13 फ़रवरी से 100 दिनों तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर इन मुद्दों पर धरना दे रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार का मज़दूर विरोधी रवैया जारी है. झारखंड किसान परिषद के अम्बिका यादव ने एक तरफ मज़दूर अपने पेट के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं और दूसरी ओर मोदी सरकार मनरेगा को ख़तम करके मज़दूरों को मारने पर तुली है. सिराज दत्ता ने कहा कि मोदी सरकार एक तरफ अडानी व चंद कॉर्पोरेट घरानों को तरह तरह का फाएदा पहुंचा रही है और दूसरी तरफ मनरेगा समेत अन्य सामाजिक व खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों को लगातार कमज़ोर कर रही है. बगईचा के टॉम कावला ने कहा कि अगर आदिवासी बेबस होकर गाँव से पलायन करे, तो उनका जल, जंगल, ज़मीन लूटना आसान होगा.
नरेगा वॉच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि यह दुःख की बात है कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है, इससे मजदूरों, दलितों, आदिवासियों एवं कमजोर वर्गों का सरकार के उदासीन रवैये से मोह भंग होना लाजिमी है. 2019 चुनाव के पहले वर्तमान सत्तारूढ़ी दलें बढ़चढ़ कर मनरेगा मज़दूरों के अधिकारों की बात करते थे लेकिन अब चुप्पी साधे हुए हैं. अभी मज़दूरों को काम की ज़रूरत है लेकिन राज्य के अनेक गावों में कई महीनों से एक भी कच्ची योजना का कार्यान्वयन नहीं किया जा रहा है.
राज्य में केंद्र की इन नीतियों व प्रशासनिक उदासीनता के कारण व्यापक पैमाने पर मज़दूरी भुगतान बकाया है. गढ़वा से आए रामदेव भुइयां ने रोष के साथ कहा कि उनके गाँव के अनेक मज़दूर फ़रवरी से भुगतान के इंतज़ार में हैं.
प्रशासनिक उदासीनता का एक हाल का उदाहरण है मजदूरों को बिना कोई कारण बताये जॉबकार्ड रद्द कर देना जिससे वे काम कर ही न पाएं. 23 फ़रवरी 2023 से 2 मई 2023 के बीच राज्य में 2.23 लाख जॉबकार्ड डिलीट किए गए हैं और केवल 51,783 नए कार्ड बने हैं. यह स्पष्ट है कि फिर से आधार से न जुड़े / एबीपीएस न हुए कार्ड को डिलीट किया जा रहा है. नरेगा वॉच द्वारा 237 ऐसे परिवारों के सर्वेक्षण में पता चला कि उनमें से 77% को तो पता ही नहीं था कि उनका जॉबकार्ड रद्द किया गया है. लोहरदगा से आई साबित एक्का ने कहा कि कार्ड रद्द करने के कारण में यह कहा गया कि “मज़दूर काम करने में इच्छुक नहीं है” जबकि मज़दूर तो गाँव में काम के इंतज़ार में बैठे हैं.धरने के अंत में सभी ने दृढ संकल्प लिया की मनरेगा की लड़ाई को तब तक चालू रखेंगे जब तक मांगे पूरी नहीं होंगी. धरने के अंत में राज्यपाल को संबोधित मांग पत्र देते हुए निम्न मांग किए गए:
● ऑनलाइन मोबाइल हाजरी व्यवस्था व आधार आधारित भुगतान प्रणाली तुरंत रद्द किया जाए.
● मनरेगा बजट को बजट बढ़ाने के साथ-साथ मनरेगा मज़दूरी दर को कम-से-कम 600 रु प्रति दिन किया जाए.
● किसी भी परिस्थिति में काम के 15 दिनों के अन्दर भुगतान सुनिश्चित किया जाए.
● ठेकेदारी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्यवाई किया जाए एवं दोषी कर्मियों व पदाधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाई सुनिश्चित की जाए. शिकायतों पर कार्यवाई सुनिश्चित की जाए.
● जॉबकार्ड को रद्द करने की प्रक्रिया को तुरंत रोका जाए और बिना भौतिक सत्यापन व ग्राम सभा की सहमति के किसी भी परिस्थिति में जॉबकार्ड न रद्द किया जाए.
● पिछले दो सालों से मनरेगा कानून अनुसार अनिवार्य सामाजिक अंकेक्षण बंद हो गया है. तुरंत निष्पक्ष सामाजिक अंकेक्षण सुनिश्चित की जाए.
धरने में अमृता उरांव, अम्बिका यादव, अफज़ल अनीस, अर्पणा बारा, बुधनी उरांव, बलराम, देवंती, जेम्स हेरेंज, जयप्रकाश टोप्पो, जयंती मेलगंडी, हेलेन सुंडी, कौशल्या हेम्ब्रम, लाल बिहारी सिंह, मनोज भुइयां, मुन्नी देवी, मुग़ले आज़म, मखलदेव सिंह, नन्द किशोर गंझु, , रामचंद्र माझी, रामदेव भुइयां, सनियारी, शीला देवी, सबिता एक्का, संदीप प्रधान, टॉम कावला समेत कई वक्ताओं ने बात रखी.