सोनुआ/ Jayant Pramanik मनरेगा को खत्म करने के मोदी सरकार की साजिश व ज़िला में लगातार मज़दूरों के अधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध मंगलवार को खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम ने चाईबासा में पुराना उपायुक्त कार्यालय के समक्ष धरना दिया जिसमें ज़िला के अनेक मज़दूर व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया.
धरना को ज़िला मुखिया संघ द्वारा भी समर्थन किया गया एवं कई प्रतिनिधि भी शामिल हुए. मंच के रामचंद्र माझी ने कहा कि मोदी सरकार मनरेगा को खत्म करने की साजिश के साथ इसे लगातार कमज़ोर कर रही है. सरकार द्वारा 2023- 24 के मनरेगा बजट को पिछले साल की तुलना में 33% कम किया गया है. इस साल कार्यक्रम में ऑनलाइन मोबाईल हाजरी प्रणाली (एनएमएमएस) को मज़दूरों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए तानाशाही तरीके से अनिवार्य कर दिया गया है. साथ ही सरकार ने भुगतान के लिए आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) को अनिवार्य कर दिया है. इन दोनों तकनीकों के कारण बड़े पैमाने पर मज़दूर काम व अपने मज़दूरी से वंचित हो रहे हैं.
कौशल्या हेम्ब्रम ने बताया कि (एनएमएमएस) के कारण मज़दूरों की परेशानियां और बढ़ गयी है. अब काम खत्म होने के बाद भी फोटो के लिए मज़दूरों को सुबह और दोपहर कार्यस्थल पर रहना पड़ता है. (एनएमएमएस) में विभिन्न तकनीकी समस्याओं व इन्टरनेट नेटवर्क की अनुपलब्धता के कारण कई बार हाजरी चढ़ नहीं पाती है और न फोटो. इसके कारण मज़दूरों द्वारा किए गए मेहनत का काम पानी हो जाता है और वे अपनी मज़दूरी से वंचित हो जाते हैं. अस्रिता केराई ने बताया कि (एनएमएमएस) के माध्यम से मज़दूरों द्वारा किए गए काम व उपस्थिति को एमआईएस में कम करना या जीरो कर देना आम बात हो गयी है. इससे मज़दूर अपने मेहनत की मज़दूरी से ही वंचित हो जाते हैं.
भोजन के अधिकार अभियान से जुड़े बलराम ने कहा कि (एनएमएमएस) इस सोच पर बनी है कि मज़दूर व ग्राम सभा समेत सभी स्थानीय लोग चोर है और केवल केंद्र सरकार ही ईमानदार है. यह ग्राम सभा, पांचवी अनुसूचि और लोकतंत्र का अपमान है. मंच के मानकी तुबिड ने कहा कि (एन एम एम एस) को सरकारी पदाधिकारियों और मंत्रियों के हाजरी और वेतन के लिए जोड़ देना चाहिए; तब उन्हें मज़दूरों के मुद्दे समझ में आएगा.
संदीप प्रधान ने कहा कि जो मज़दूर (ए बी पी एस)से लिंक्ड नहीं हैं उन्हें तो अब स्थानीय प्रशासन द्वारा काम भी नहीं दिया जा रहा है. अगर मस्टर रोल में कुल मज़दूरों में केवल एक भी
(ए बी पी एस) लिंक्ड नहीं है, तो सभी मज़दूरों का भुगतान रोक दिया जा रहा है. ज़िला के लगभग 1 करोड़ मज़दूरों में केवल आधे ही (ए बी पी एस) लिंक्ड हैं.मुखिया संघ के अध्यक्ष हरिन तामसोय ने कहा कि इन तकनीकों के कारण अब पंचायत स्तर पर सब कुछ सही से करने के बावज़ूद भी मज़दूर भुगतान से वंचित हो रहे हैं. मनरेगा में अब पूरा केन्द्रीकरण हो गया है.
नरेगा वॉच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि मनरेगा मज़दूरों की ऐसी स्थिति सिर्फ पश्चिमी सिंहभूम तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरे देश में है. झारखंड समेत पूरे देश के मनरेगा मज़दूर पिछले 60 दिनों तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर इन मुद्दों पर धरना दिए लेकिन केंद्र सरकार का मज़दूर विरोधी रवैया जारी है. मंच के सिराज दत्ता ने कहा कि मोदी सरकार एक तरफ अडानी व चंद कॉर्पोरेट घरानों को तरह तरह का फाएदा पहुंचा रही है और दूसरी ओर मनरेगा समेत अन्य सामाजिक व खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों को लगातार कमज़ोर कर रही है.
मंच के प्रतिनिधियों ने कहा कि दुःख की बात है कि अभी तक राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के इन मज़दूर विरोधी नीतियों का विरोध नहीं किया है और मनरेगा को बचाने की लड़ाई में मज़दूरों के साथ खड़ी नहीं दिख रही है. 2019 चुनाव के पहले वर्तमान सत्तारूढ़ी दलें बढ़चढ़ कर मनरेगा मज़दूरों के अधिकारों की बात करते थे.
धरना में आए लोगों ने मनरेगा मज़दूरों के प्रति राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन के उदासीनता के विषय में बात रखी. ज़िला से हर साल की तरह इस साल भी रोज़गार की तलाश में व्यापक पलायन हो रहा है. बनमाली बारी ने कहा कि अभी मज़दूरों को काम की ज़रूरत है लेकिन ज़िला के अनेक गावों में कई महीनों से एक भी कच्ची योजना का कार्यान्वयन नहीं किया गया है. काम की मांग करने के बाद भी समय पर सभी मज़दूरों को काम नहीं दिया जाता है. बड़े पैमाने पर भुगतान बकाया है. खूंटपानी की मज़दूर रानी जामुदा ने कहा कि उनके 62 दिन काम का भुगतान बकाया है. हाटगम्हरिया के मज़दूर मुदुई सुंडी ने कहा कि एक साल पहले 40 दिन काम किया था जिसका भुगतान अभी भी बकाया है. तांतनगर की श्रीमती पूर्ति जिनका कई महीनों से भुगतान बकाया है ने कहा कैसे बिना मज़दूरी भुगतान के भूखे पेट पर काम किया जा सकता है.
लोगों ने कहा कि बिचौलियों और स्थानीय प्रशासन के मिलीभगत से बड़े पैमाने पर फ़र्ज़ी मस्टर रोल निर्गत कर चोरी किया जा रहा है जिसके कारण कागज़ पर काम दिखता है लेकिन धरातल पर नहीं. शिकायतों पर कार्यवाई भी नहीं की जाती है. प्रशासन की मिलीभगत स्पष्ट है.
धरने में उक्त वक्ताओं के अलावा अजित कांडेयांग, अशोक मुंडरी, दिनेश बोईपाई, गंगाधर गोप, हेलेन सुंडी, कमला दास, महेंद्र जामुदा जयंती मेलगंडी, रमेश जेराई, रेयांस समाद, राजेश प्रधान समेत कई वक्ताओं ने बात रखी. धरने के अंत में मंच द्वारा मुख्यमंत्री को संबोधित मांग पत्र एवं उपायुक्त को ज़िला स्तरीय समस्याओं सम्बंधित मांग पत्र देकर निम्न मांग किया गए:
• ऑनलाइन मोबाइल हाजरी व्यवस्था व आधार आधारित भुगतान प्रणाली तुरंत रद्द किया जाए.
• मनरेगा बजट को बजट बढ़ाने के साथ-साथ मनरेगा मज़दूरी दर को कम-से-कम 600 रु प्रति दिन किया जाए.
• सरकार हर गाँव में मनरेगा अंतर्गत पर्याप्त संख्या में कच्ची योजनाओं का कार्यान्वयन शुरू करे.
• लंबित भुगतान का सर्वेक्षण करवा कर मुआवज़ा सहित मज़दूरी भुगतान दिया जाए.
• ठेकेदारी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्यवाई किया जाए एवं दोषी कर्मियों व पदाधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाई सुनिश्चित की जाए. शिकायतों पर कार्यवाई सुनिश्चित की जाए.
• किसी भी परिस्थिति में काम किए गए मस्टर रोल को (एम आई एस) में जीरो न किया जाए. ऐसा करने वाले दोषी कर्मियों के विरुद्ध कार्यवाई की जाए.
• किसी भी परिस्थिति में बिना भौतिक सत्यापन व ग्राम सभा के सत्यापन के बिना कोई भी जॉबकार्ड रद्द न किया जाए.
Reporter for Industrial Area Adityapur